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________________ साधना के सोपान बात का बतंगड़ न होता । पर वह अपने को कहाँ भर रहा है ! वह तो तिजोरी को भरता है। अपने चारों ओर माल - सामान का ढेर लगा रहे हो और स्वयं बिल्कुल खाली पड़े हो । अंतत: नतीजा यह होगा कि माल यहीं पड़ा रह जाएगा और मालिक लुट जाएगा। उस पिंजरे का क्या मोल जिसका पंछी उड़ जाए ! कहते हैं : किसी समय एक आदमी के पास कई तरह के पशु-पक्षी थे । जब उसने सुना कि हजरत मूसा पशु-पक्षियों की भाषा समझते हैं तो वह मूसा के पास गया। उसने मूसा से पशु-पक्षियों की भाषा सीखनी चाही, पर मूसा ने मना कर दिया। आदमी अपनी जिद पर अड़ा रहा और हठ करके उसने मूसा से भाषा सीख ली। तब से वह आदमी अपने पशु-पक्षियों की बातचीत जब-तब सुना करता । एक दिन मुर्गे ने कुत्ते से कहा कि मालिक का घोड़ा बहुत जल्दी ही मरने वाला है। आदमी ने जब यह सुना तो बड़ा खुश हुआ। उसने अपना घोड़ा बेच दिया और होने वाली हानि से बच गया। थोड़े दिन बाद उसने मुर्गे को कुत्ते से यह कहते सुना कि मालिक का खच्चर शीघ्र ही मर जाएगा । मालिक ने खच्चर को भी बेच दिया। एक दिन मुर्गे ने गुलाम के मरने की बात कुत्ते को कही, तो मालिक ने उसे भी बेच दिया। वह प्रसन्न था कि उसने पशु-पक्षियों की भाषा सीखकर कितना लाभ प्राप्त किया। अंत में एक दिन मुर्गे ने कुत्ते से कहा कि दो दिन बाद अपने मालिक की मृत्यु होने वाली है। यह सुनकर वह घबराया और भय के मारे काँपने लगा। वह दौड़ा-दौड़ा गया मूसा के पास, पूछा कि अब मैं क्या करूँ ? मूसा ने कहा- करना क्या है ? जाओ और अपने को बेच डालो। 'क्या ?' 'हाँ, ठीक वैसे ही जैसे तुमने घोड़े, खच्चर और गुलाम को बेचा' । क्या बेचोगे स्वयं को ? कितने में बेचोगे ? किसके लिए बेचोगे ? तुम्हें तो आग लगी जा रही है। जिंदगी न तो बेचने के लिए है और न बदले में कुछ पाने के लिए है। मेहरबानी कर अपने लिए जरा सोचो कि जीवन क्या है और जीने के उद्देश्य क्या हैं? जीवन के मूल्य क्या हैं? किसमें जीवन की सार्थकता है और किसमें निरर्थकता ? 67 अपने इर्द-गिर्द देखता हूँ कि हर कोई जन्म लेता है, पलता है, बढ़ता है, संघर्ष करता है, ऐश-आराम, मौज-मस्ती करता है और फिर अपने बनाए - बसाए संसार को छोड़कर एक दिन चला जाता है। यह एक बँधी- बँधाई लीक दिखाई देती है। लोग इसी लीक पर चलते हैं। कोई आराम से गुजर रहा है तो कोई कठिनाई से । यह एक ऐसी यात्रा हुई जिसे मैं बगैर गंतव्य की यात्रा कहूँगा । अब सवाल यह है कि क्या यही जीवन है ? यदि हाँ, तो जानवर और इन्सान में कोई बिचौलिया फर्क नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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