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________________ 17 शांति का मार्ग : वर्तमान की अनुपश्यना बस, सात दिन और...? युवक को भगवान की वाणी से अवगत कराया गया। अपनी मृत्यु की बात सुनते ही स्तब्ध हो उठा वह। पसीने से तरबतर। खंडहर हो गए थे मन के रचे समस्त महल-महराब। उसने सीधे भगवान की शरण स्वीकार की। रोते-कलपते देख, आखिर उसे भगवान ने कहा, 'रोने से कुछ न होगा प्रिय ! मन को शांत कर स्वयं की सार्थकता पर पुनर्विचार करो।' भगवान् ने उसे समझाया कि मृत्यु से सत्य नहीं, मात्र स्वप्न मिटते हैं। भगवान् की वाणी मर्म तक सीधी भीतर उतर गई। मन संसार से कमलवत् ऊपर उठ गया। अब शरीर उसके लिए मंदिर था और विचार श्रीफल। प्रदीप्त हुई थी एक अंतर-लौ जीवन को उजागर करने को। आयुष्य की रेखा मात्र सात दिन की और थी। प्रतिपल मृत्यु का समय करीब आ रहा था, पर मृत्यु हो न पाई; निर्वाण पहले हो गया, विषपाई स्वयं अमृत हो गया। घटना मात्र घटना नहीं, वरन् स्वयं की मन:स्थिति को देखने की, पहचानने की, मुक्त होने की प्रेरणा है। हम वर्तमान के साधक हों। वर्तमान परिस्थिति के. वर्तमान क्षण के, वर्तमान स्वरूप के अर्थात् वर्तमान के साक्षी और अनुद्रष्टा हों। वर्तमान की अनुपश्यना ही मन की शांति का सहज सरल मार्ग है। हम अंतरतम को पहचानें, स्वयं में आत्म-शक्ति और आत्म-विश्वास का संचार करें। प्रकाश को हमारी जरूरत है और हमें प्रकाश की। हम स्वयं में ज्ञान और विश्वास के प्रकाश को, सत्य और शांति के आलोक को स्वयं में साकार हो लेने दें। आज भले ही अंधकार हो, पर जिनकी आँखों में प्रकाश की अभीप्सा और प्रार्थना है, प्रभात उन्हीं के कदमों तले है। संसार को हमसे प्यार है, बशर्ते हम आलोकित जीवन के स्वामी हो जाएँ। 300 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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