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अन्तर के पट खोल
झोकों के साथ घर-घाट के बीच झख मारती रहती है। जिंदगी ऐसे ही तो तमाम होती है। जिंदगी पूरी बीत जाती है। सार क्या हाथ लगता है झख मारने के सिवा ?
चित्त की अनेकता का अर्थ है - वृत्तियों एवं प्रवृत्तियों की बहुलता। वृत्तिबहुलता ही चित्त का बिखराव है। चित्त हमारे शरीर की सबसे सूक्ष्मतम किंतु प्रबल ऊर्जा है। ‘जाति-स्मरण' का अर्थ है चित्त का बारीकी से वाचन। ऊर्जा बिखराव के लिए नहीं होती, उपयोग और संयोजन के लिए होती है। जो चित्त आज भटक रहा है, यदि उसे सम्यक् दिशा में मोड़ दिया जाए, तो चित्त की प्रखरता हमारे जीवन के ऊर्ध्वारोहण में सर्वाधिक सहकारी बन सकती है।
योग का अर्थ और उद्देश्य चित्त के बिखराव को रोकना है। चित्त के समीकरण का नाम ही योग है। हमें ध्यानयोग से प्रेम करना चाहिए, क्योंकि हम ऊर्जा के संवाहक हैं। हमें ऊर्जा का स्वामी होना है, उसका गुलाम नहीं। चित्त हमारा अंग है। हम चित्त के आश्रित नहीं हैं। यही तो व्यक्ति की परतंत्रता है कि वह 'आश्रित' के आश्रित हो गया। स्वप्न की उड़ानों के जरिए नींद की खुमारियों में चित्त आठों प्रहर व्यस्त रहता है और मनुष्य है ऐसा, जिसने अपनी संपूर्ण समग्रता उसी की पिछलग्गू बना दी है। यह प्रश्न हर एक के लिए चिंतनीय है कि मनुष्य चित्त का अनुयायी बने या चित्त मनुष्य का।
संबोधि का मतलब है, चित्त और चैतन्य का बोध प्राप्त करना। आत्म-ज्ञान के लिए चित्त का बोध अनिवार्य पहलू है। चित्त को एकाग्र/एकीकृत किया जाना चाहिए। एकाग्रता से ही भीतर की प्रखरता और तेजस्विता आत्मसात् होती है।
सामान्य तौर पर चित्त की संबोधि के लिए हमें चित्त की दो वृत्तियों के प्रति सजग होना चाहिए - एक तो है स्वप्न और दूसरी है निद्रा। सजगता ही स्वप्न और निद्रा की बोधि एवं मुक्ति की आधारशिला है। सजगता जागरण है और जागरण चित्त की उठापटक से उपरत होने का प्रथम और अंतिम द्वार है। मनुष्य जितना अधिक सोया, उतना ही श्मशान में रहा। सपनों में जितनी रातें बिताईं, उसने उतना ही भव-भ्रमण किया। वह प्रेतात्मा की तरह हवा में भटकता रहा, किंतु जो जितना जागा, उसने अस्तित्व को उतना ही आत्मसात् कर लिया।
__ आत्म-जागरण स्वप्न और निद्रा के ज्ञान से अवतरित होता है। चित्त की स्थिरता के लिए योग ने जो मार्ग चुने, उनमें यह भी एक है- 'स्वप्न-निद्राज्ञानालम्बनम् वा'अर्थात स्वप्न और निद्रा के ज्ञान के सहारे भी चित्त की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
प्रश्न है : स्वप्न क्या है ? स्वप्न अपने आप में एक मानसिक क्रिया है। अर्धनिद्रित
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