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________________ साधना का आदर्श : वीतराग 127 हो कैदियों को ? उन्होंने कारागृह के प्रकोष्ठों को भी फूलों और चित्रों से सजा रखा है। कारागृह से मुक्त तो वही हो सकता है, जो कारागृह को कारागृह माने। बंधन को आनंद मानने वाला व्यक्ति प्रबुद्ध नहीं, वरन पिंजरे का पंछी है। मुक्ति के गीत तो तब कहीं से सुनाई देते हैं, जब सीखचों को आत्म-स्वतंत्रता का बाधक और बंधन माना जाता है। उन लोगों को क्या कहेंगे जिन्हें बीस वर्ष जेल में ही रहने के बाद जब मुक्त किया जाता है, तो वे उलटा जेल में ही रहना चाहते हैं। जो प्रेम घर के प्रति होना चाहिए था, वह प्रेम कारागृह के प्रति हो गया। जो अपना संपूर्ण ध्यान अपनी स्वतंत्रता पर केंद्रित करता है, वही आजाद हो सकता है। बंधन उसी के गिरते हैं जो मुक्त होता है। ऐसे ही लोग कहलाते हैं - निग्रंथ और निबंध। स्वतंत्रता के लिए श्रम तो सभी करते हैं, किंतु जरूरत है उस बोधिलाभ की, जो हमें बंधनों को समझा सके। राजा उदायन ने चंडप्रद्योत से युद्ध किया। चंडप्रद्योत हार गया। उसे बंदी बनाकर जंजीरों से जकड़ लिया गया। उदायन की यह विशेषता रही कि उसने प्रद्योत को उन जंजीरों से बाँधा, जो सोने की थीं। भले ही उदायन को इस बात की प्रसन्नता हो कि उसने सोने की जंजीरों से बाँधकर प्रद्योत को कुछ सम्मान दिया है, पर जिसने बंधन को बंधन मान लिया, चाहे वह लोहे की जंजीर का हो या सोने की, वह उससे मुक्त होना ही चाहेगा। राजा कभी बंदी नहीं होता और जो बंदी होता है, वह स्वयं को कभी सम्राट् नहीं समझाता। सम्राट् तो वह है जो स्वतंत्र होता है, स्वयं की अहमियत का स्वामी होता है। ___हर मनुष्य सम्राट् है। यदि नहीं है, तो वह हो सकता है। हर कोई सम्राट् बने, यही तो हमारा प्रयास है। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने बंधनों को समझे और फिर उन्हें गिराए। बंधन को समझ जाने वाला व्यक्ति ही बंधन-मुक्ति के लिए अपने प्रयासों के पंख खोलता है। बंधन यदि लोहे और सोने की जंजीरों के होते, तो शायद हम उन्हें बहुत जल्दी देख समझ लेते। बंधन तो भीतर के हैं। भीतर के बंधनों को समझने के लिए भीतर की दृष्टि चाहिए। यह आत्म-क्रांति है। ___ इंद्रियाँ बाहर के बंधनों को देखती और समझती हैं। इंद्रिय-संलग्नता से दो इंच आगे बढ़ो, तभी समझ पाओगे अपने बंधनों को। अंतर्यात्रा आध्यात्मिक सफर है। अंतर्यात्रा के लिए अतींद्रिय होना अनिवार्य है। जरा एक विहंगम दृष्टि तो दौड़ाओ अपने बंधनों पर, बंधनों पर आ चुके बंधनों पर। गिनना मुश्किल होगा उन बंधनों को। घास के ढेर में दबी-गुमी सुई को ढूँढ़ना कठिन जरूर होगा, पर यह कार्य असंभव नहीं है। मकान तुम पर ढह गया, इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम मकान से गायब हो गए। मलबे में कहीं फँसे हो तुम। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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