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________________ पहचानें स्वयं को-'कौन हूँ मैं ?' 119 है। बुद्धिमत्ता की पहचान भी यही है कि जो क्षुद्र में भी विराट की छाँह देख ले। __ जीवन तो छोटी-छोटी घटनाओं से ही परवान चढ़ता है। जीवन की प्रयोगशाला में होने वाले आविष्कार, पाए जाने वाले अनुभव ही तो जिंदगी के पाठ हैं, उपलब्धि हैं। उपलब्धि तो तभी बनती है, जब हम जीवन में अनुभव बटोरें, उन्हें गूंथे, उनकी माला पिरोएँ। अनुभव तो हर आदमी बटोरता है, किंतु अनुभव पाने के बाद भी उस आदमी के अनुभव बिखरे ही रहते हैं, जिनसे वह उनकी माला नहीं बना पाता। ऐसे आदमी से उसके जीवन का निचोड़ पूछो, तो वह एकाएक उत्तर ही नहीं दे पाएगा। आदमी की उम्र चाहे पच्चीस हो या पचास, यहाँ उम्र का तो महत्त्व ही नहीं है। अनुभव का निचोड़ क्या है ? इसका जवाब देने में बहुत समय लग जाएगा उसे। अनुभव तो सभी बटोरते हैं। बुद्धिमान तो वह है, जो अनुभवों को किसी सूत्र में पिरोए। अनुभव फूलों की तरह होते हैं। बगीचे में आप गए। वहाँ विभिन्न तरह के फूल खिले हुए हैं। इन फूलों को एकत्र कर लिया, तो माला बन गई। जिंदगी के बगीचे में भी हजारों तरह के फूल खिलते हैं। इन्हें एकत्र नहीं करोगे, तो वे पड़े-पड़े सूख जाएँगे। मूल बात तो यही है कि अनुभव बटोरो। आदमी के अनुभव उसकी बोधि और मुक्ति का कारण इसलिए नहीं बन पाते, क्योंकि आदमी उन अनुभवों से शिक्षा नहीं ले पाता। किसी एक धागे में उसने उन्हें पिरोया नहीं है; इसलिए वे अनुभव खाली ही रह गए और उनका उपयोग नहीं हो पाया। ___आदमी तीन तरह के होते हैं। पहले तो वे, जो अनुभव तो करते हैं, मगर न तो उन अनुभवों से कुछ सीखते हैं और न ही अनुभव बटोरते हैं। ऐसे लोग अनुभव पाने के बाद भी कोरे ही रह जाते हैं। बुद्धि तो सबके पास होती है, मगर ऐसे लोग विरले ही हैं जो उसका उपयोग करते हैं। बुद्ध एक तो वह है जो बुद्धिहीन है। दूसरा वह, जिसके पास बुद्धि तो है, मगर वह उसका उपयोग नहीं करता। ___मैं चौक में रोजाना सुबह देखता हूँ कि एक आदमी रोज सुबह दो घंटे तक भाषण देता है। वह प्रोफेसर और पंडित से भी अच्छा भाषण देता है, मगर उसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि उसे पता ही नहीं है कि वह क्या बोल रहा है। बुद्धि का प्रयोग तो पागल भी करता है, मगर उसका सही उपयोग तभी कहलाएगा, जब बुद्धि सही मार्ग पर नियोजित हो। इस मायने में तो हम सब बुद्ध ही कहलाएँगे, क्योंकि बुद्धि का उपयोग किया, अनुभव भी बटोरे, मगर आज यदि कोई हमसे जीवन का उपसंहार पूछ ले, तो हम चुप हो बैठेंगे। - जीवन में छोटी-छोटी घटनाएँ तो खूब घटती हैं, पर जाग्रत वही है जो छोटी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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