SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थितप्रज्ञ की स्थिति मनुष्य का जीवन ऐसा हो, जैसे धरती पर खिला हुआ कोई गुलाब का फूल। । जो केवल फूलों के आकार-प्रकार और रंग-रूप से ही मोहब्बत करते हैं, उनके लिए तो कागज के फूल ही पर्याप्त होते हैं। कागज के फूल दिखने में असली फूलों जैसे ही होते हैं, किंतु उनके पार केवल वे ही होते हैं। धरती पर खिले हुए किसी फूल को निहारो, तो केवल फूल ही दिखाई नहीं देता, वरन् फूलों के पार जो अदृश्य है, वह भी दृष्टिगत होता है। वह अदृश्य ही फूलों का मूल प्राण है। जहां व्यक्ति अपने प्राणों के जरिए फूलों के प्राणों को निहारता है, वहां प्राण केवल प्राण नहीं रहते, प्राण भी महाप्राण बन जाते हैं। कागज के फूल तो बाजारू हैं, लेकिन धरती पर खिले फूल तो मां की गोद में खेलते मासूम बच्चे की तरह हैं। __ आज का इन्सान कागज के फूलों की तरह है। आकार-प्रकार से वह पूर्ण मनुष्य दिखाई देता है, लेकिन उसके भीतर सुवास और कोमलता नजर नहीं आती। उस मंदिर का मूल्य ही क्या, जिसका भगवान उसमें नहीं रहता हो। मस्जिद के फानूस और चर्च की मोमबत्ती का प्रकाश तो आख़िर बाहर से जलाया गया प्रकाश है। प्रकाश तो वह है, जो फानूस और मोमबत्ती के बुझ जाने पर भी, चांद और सूरज के डूब जाने पर भी आदमी की आंखों में सदा-सदा बना रहे। घुप अंधेरे में भी तुम्हारी अंतरात्मा का प्रकाश तुम्हें अपनी पहचान करवा ही देगा, तुम्हें दिग्दर्शन करवा ही देगा। अष्टावक्र उसी प्रकाश की बात करना चाहते हैं, जो दुनिया भर के घटाटोप अंधकार के बीच भी तुम्हें राह दिखा दे। स्वयं के भीतर के इस प्रकाश का बोध तुम नहीं कर पाए, तो तुम्हारी आत्मा तुम्हें कभी माफ नहीं करेगी। तुम हजारों-हजार दीये क्यों न जला लो, अपना एक दीया अनबुझा रह गया, तो बाहरी दीये भी क्या अर्थ रख पाएंगे! गधे की पीठ पर अगर चंदन भी ढो लो, तब भी उसके लिए तो वह केवल भार ही है। अगर स्वयं के जीवन में स्वयं की सुवास नहीं है, तो जीवन कागज का फूल ही होगा। 55 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003867
Book TitleNa Janma Na Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2003
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy