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________________ क्या आप समझ पाए कि जेन क्या है? संत होताई ने जेन की यह समझ देनी चाही कि चित्त को शून्य कर देने का नाम ही जेन है; यही साधना है, यही ध्यान है। अपने को रिक्त कर लेने का, मौनपूर्वक साक्षित्व को उपलब्ध कर लेने का नाम ही ज़ेन है। वही ज़ेन हिंदुस्तान में पहले 'झाण' और तदनंतर धर्मग्रंथों में 'ध्यान' कहलाया। ज़ेन और झेन दोनों एक ही हैं। ___जो व्यक्ति स्वभाव से ही शून्य हो गया है, वह व्यक्ति केवल प्रमोदवश ही विषय की भावना रखता है। यह बड़ा कीमिया सूत्र है। शायद इतना चुनौतीपूर्ण सूत्र कोई न कह पाया होगा कि अगर विषयों की भावना भी रखता है, तो केवल प्रमोदवश, केवल खेल समझकर, रास-लीला जानकर । वह तो केवल एक 'स्वांतः सुखाय' की भावना रखता हुआ प्रतीत होता है। विषय कौन से? शब्द-विषय, रूप-विषय, रस-विषय, गंध-विषय और स्पर्श-विषय । अष्टावक्र तो कहते हैं कि विषय विष के समान हैं। कोई एक साधक विषयों की भावना कैसे रख लेगा? कहते हैं कि भगवान ने जब सृष्टि की रचना की, तो वे अकेले थे, तो क्या वे अकेलेपन से ऊब गए थे और उन्होंने संसार का निर्माण कर दिया? उन्होंने सृष्टि की रचना केवल प्रमोदवश की। श्रीकृष्ण भगवान कहलाए, मगर उसकी लीलाएं तो देखो। वे माखन-चोर बने, लोगों के घर चोरियां कीं, मटकियां फोड़ी, मगर यह सब किया महज प्रमोदवश। परमात्मा का अवतार भी कभी-कभी रास-लीलाएं रचता है । वे माखन नहीं चुराते, वे तो जन्म-जन्म से तुम्हारे द्वारा सिंचित पापों को चुरा ले जाते हैं। कभी-कभी लीला रचने के लिए मिट्टी उठा लेते हैं और खाने लगते हैं। जब यशोदा गाल पर चांटा मार ही देती है और कहती है-मूर्ख, तू यह क्या कर रहा है? वह मिट्टी निकालने के लिए कृष्ण का मुंह खुलवाती है। तभी चौंक पड़ती है कि मुंह में सारा ब्रह्मांड चक्कर लगा रहा है। वह समझ जाती है कि यह माटी खाना तो एक लीला भर है। आत्मज्ञानी व्यक्ति भोजन करता हुआ भी भोजन नहीं करता; चलता हुआ भी नहीं चलता; खाता हुआ भी नहीं खाता। अनासक्त का किसमें रस, अलिप्त आदमी की किसमें स्पृहा ! जो स्वयं आकाश हो गया, उसे न तो बदली से सरोकार है, न बिजली की चमक से। वह व्यक्ति जीवन-मुक्त है, जिसका स्वभाव से ही चित्त शून्य है। अगर वह व्यक्ति सोया हुआ दिखाई भी दे, तो वह सोया हुआ नहीं है, सोकर भी जागा हुआ है। गीता कहती है कि संयमी पुरुष सोया हुआ भी जाग्रत है और असंयमी पुरुष जागा हुआ भी सोए हुए के समान है। संयमी पुरुष लेटी हुई देह के भीतर भी नित्य-निरंतर साक्षी और जाग्रत है। पुरानी धार्मिक किताबों में भारंड पक्षी का उल्लेख है, जिसके दो मुंह होते हैं, लेकिन शरीर एक ही होता है। जब एक सिर नींद लेता है, तो दूसरा सिर पहरा देता है। इसी तरह वह व्यक्ति जाग्रत है, जो सोए हुए लोगों के बीच भी जाग्रत रहता है। 104 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003867
Book TitleNa Janma Na Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2003
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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