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________________ इतना माधुर्य हो कि हमारे दो वचन भी दूसरों के लिए फूलों का उपहार बन जाए। हमें जहाँ अपने आत्म-सम्मान को गिरने नहीं देना चाहिए, वहीं दूसरों की अदब-इज़्ज़त का भी ध्यान रखना चाहिए। आचार-शुद्धि के लिए संकल्प लें - 1. मैं किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ का सेवन नहीं करूँगा। अपने खानपान की शुद्धता और सात्विकता के प्रति सजग रहूँगा। 2. न मैं किसी तरह का ग़लत काम करूँगा और न ही किसी और को ग़लत राह पर चलने को उत्साहित करूँगा। ___3. मैं अपनी आजीविका की शुद्धता को बनाए रखुंगा। मैं झूठफरेब और मिलावट न करने की प्रतिज्ञा करते हुए सच्चाई और ईमानदारी से वांछित साधनों का अर्जन करूँगा। ___4. मैं घर में ऐसा माहौल बनाए रखूगा कि घर भी स्वर्ग जैसा सुन्दर-स्वच्छ हो। फिर चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी 'त्याग' क्यों न करना पड़े। ___5. मैं औरों के सुख-दुःख में काम आऊँगा। नेकी करूँगा और भूल जाऊँगा। ___ आत्म-शुद्धि के ये चरण मानव-मुक्ति के लिए हैं, मनुष्य के देवता बनने के लिए हैं। हमारी दृष्टि, हमारे आचार-विचार सम्यक् और पवित्र हों तो जीवन मानवीय भगीरथ द्वारा धरती पर लायी गई स्वर्गागन्तुक गंगा साबित हो सकता है। सुख-शांति और प्रेम का सागर, रत्नाकर! 000 961 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003866
Book TitleDharm me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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