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कलाप से। भीतर को शुद्ध करके ही व्यवहार को शुद्ध किया जा सकता है। व्यक्ति की दृष्टि और विचार ही हर आचार-व्यवहार, आदत-चरित्र का आधार होते हैं।
हमारी दृष्टि हमारे विचारों को प्रभावित करती है, विचार शब्दों को, शब्द क्रियाओं को, क्रिया आदतों को और आदतें चरित्र को प्रभावित करती हैं। एक गंदी सोच गंदे विचार गंदे चरित्र का कारण बनती है, एक बेहतर सोच बेहतर चरित्र का। अपनी दृष्टि और विचारों को बेहतर बनाना जीवन को व्यवस्थित करने का बुनियादी स्वरूप है। दृष्टि, विचार और आचार को शुद्ध-बेहतर बनाना एक ऐसी चुनौती है, जिसे जो भी स्वीकार करेगा, जीवन के श्रेष्ठ उच्चतम शिखरों का स्वामी बनेगा।
दर्शन-शुद्धि, विचार-शुद्धि और आचार-शुद्धि - हम तीनों को क्रमशः लें। दर्शन-शुद्धि __ दृष्टि की अपनी अहमियत है। दृष्टि ही वह आधारशिला है, जिस पर जीवन-मूल्यों के ज्योति-कलश टिकते हैं । आँखें दो होती हैं, पर दोनों की रोशनी तो एक ही होती है। हमारे पास अपनी कोई दृष्टि नहीं है। हम उधार दृष्टियों से काम चला रहे हैं। हमारी दृष्टि में मिलावटें हो चुकी हैं। बगैर दृष्टि की पवित्रता के न विचार सात्त्विक रह सकते हैं और न ही तन, मन और आचरण को निर्मल रखा जा सकता है। अन्तर-दृष्टिपूर्वक जीना ही जीवन का सत्य सहज स्वरूप है। दर्शन-शुद्धि के लिए संकल्प लें - 1.मैं देह नहीं, आत्मा हूँ। देह में रहकर भी देह से भिन्न हूँ।
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