________________
'सोऽहं' - मैं वह हूँ। शिवोऽहम् – मैं शिव हूँ, शिव रूप हूँ। कायगत मन्दिर में शिवतत्व विराजमान है। शिव व्यक्ति-वाचक नहीं, स्वभाव-वाचक है। शिव यानी कल्याण। जिन गुणों से दिव्यता, पवित्रता और पूर्णता आत्मसात् हो, उसी से मनुष्य का, सृष्टि का कल्याण है, निर्वाण है।
सार रूप में निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दें -
1. चित्त के तृष्णा, राग-द्वेष, काम-क्रोधजनित संस्कार ही हमें भव-चक्र में भटकाते हैं। अपने में घर कर चुके और पुनः पुनः उदयशील होते संस्कारों को समझें, उनके प्रति जागरूकता और बोध-दशा का उपयोग करें।
2. मन का सार्थक सकारात्मक उपयोग करें, व्यर्थ की चिन्ता और कल्पनाओं में उसकी ऊर्जा नष्ट न होने दें। सार्थक बिन्दुओं पर चिन्तन करें, सकारात्मक सोचें, ध्यान और स्वाध्याय के द्वारा मन को बेहतर दिशा प्रदान करते रहें।
3. हृदय शान्ति और पवित्रता का तीर्थ है। हम शरीर से ज्यादा हृदय को मूल्य दें, हृदयवान होकर जिएँ।
4. बुद्धि का कार्य ज्ञान है। जीवन जितना ज्ञानमूलक होगा, जीवन के उतने ही बेहतर परिणाम होंगे।
5. बुरा न देखें, बुरा न बोलें, बुरा न सुनें, लेकिन ध्यान रखें चौथा बन्दर कहता है - बुरा न सोचें।
स्वास्थ्य के लिए सात्त्विक आहार लीजिए, शान्ति के लिए ध्यान कीजिए, पवित्रता के लिए ज्ञान और बोध का उपयोग कीजिए और
76/
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org