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प्राप्त करें आत्म-परिचय
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किसी से पूछा जाए कि आपका परिचय क्या है तो वह सीधा अपना नाम बताएगा। परिचय यदि विस्तृत चाहिए तो पिता का नाम, शिक्षा और व्यवसाय आदि का जिक्र हो जाएगा। यह परिचय व्यावहारिक है। यह उसका वर्तमान और औपचारिक स्वरूप है।
अपना स्थूल परिचय सबको मालूम है, पर उस परिचय से हम अनभिज्ञ हैं जो जीवन का आधार है। नाम तो पुकारू होते हैं और माता-पिता सांयोगिक । नाम तो हमें उसका तलाश करना है जो हम सबके भीतर बैठा गुमनाम है। हमें उसका परिचय प्राप्त करना है जो जन्म से पहले भी रहा है और मृत्यु के बाद भी रहेगा।
न तो जन्म से हमारी शुरुआत है और न ही मृत्यु पर समाप्ति। जीवन तो एक धारा है - जन्म-जन्मांतर के संस्कारों की। काया बनती है, विस्तार पाती है, शिथिल होती है और एक दिन चिता पर चढ़ जाती है। यह यात्रा मनुष्य मात्र की है, प्राणिमात्र की है। मनुष्य का जन्म और
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