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________________ उड़ते हुए देखने का आनन्द उठाएँ और किसी बुलबुल को खा जाने की बजाय उसके गीत सुनने का लुत्फ उठाएँ । भला, जब हम अपने को मरवाना नहीं चाहते तो औरों को मारना क्यों चाहते हैं ? अन्तत: जीवों का वध अपना ही वध है । जीवों पर की जाने वाली दया अपने आप पर ही दया करना है । सत्ता की दृष्टि से सब एक हैं, सबका अन्तर-संबंध है । हमें भी किसी भी द्वार से गुजरना पड़ सकता है । 1 आज यदि कोई पंगु है, तो वह किसी तरह का वंशानुगत परिणाम नहीं है। यह कर्म का परिणाम है। अवश्य हमने अपने पूर्वजन्म में किसी का पाँव तोड़ा होगा तो आज हमें पाँव से वंचित होना पड़ा है। कोई भी व्यक्ति नेत्रहीन तभी पैदा होता है जब उसने पूर्वजन्म में किसी के नेत्र छीने होंगे। आज व्यक्ति जो कुछ है वह अपने पूर्वजन्म का परिणाम है। आने वाले जन्म में व्यक्ति क्या होगा उसे सुख-दुःख के किन गलियारों से गुज़रना होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस जन्म में हमने भाव, विचार, क्रिया या व्यवहार के द्वारा किस तरह के बीज बोए हैं। हमारे लिए वांछित यही है कि हम ऐसे बीज बोएँ जिनकी फसलों को काटते वक्त हमें खेद या ग्लानि न हो। आत्मदृष्टि से हमें सबके प्रति प्रेम और आत्मीयता रखनी चाहिए। मनुष्य ही क्यों, पशुओं और पंछी - पखेरू के प्रति भी स्वस्थ दृष्टिकोण इज़हार करना चाहिए। फल-फूल, पत्ती-प्रकृति के हर अंश में प्रभु के दर्शन करने चाहिए। किसी को ओछा या नीच मानकर उसे छूने और बतियाने से परहेज़ रखना, न केवल अमानवीय है, वरन अपने ही साथ किया जाने वाला सौतेला व्यवहार है। | जीवन तो जन्म-जन्मान्तर से चल रहा प्रवाह है । किसी के प्रति ओछापन बरत कर हम अपने आपको ओछा न बनाएँ । हम अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only 49 www.jainelibrary.org
SR No.003866
Book TitleDharm me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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