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________________ हमारा हर दस मिनट का क्रोध हमारे सौ मिनट की प्रसन्नता छीन लेता है। हमने माचिस की तीली का उपयोग किया है। तीली के सिर होता है, पर दिमाग़ नहीं। इसीलिए थोड़ी-सी रगड़ लगने मात्र से तीली सुलग उठती है। हमारे तो सिर भी है और दिमाग़ भी, फिर हम छोटीछोटी बातों में गुस्सा क्यों खा बैठते हैं? हमें एंग्री मैन बनने की बजाय हैप्पी मैन बनना चाहिए। क्रोधी चेहरा दूसरे को तो क्या, आईना देखोगे तो खुद को भी नहीं सुहाएगा। हँसता-खिलता चेहरा जो कोई देखेगा अपना दिल दे बैठेगा। अगर स्वर्ग को अपने जीवन में जीना है तो हर आदमी अपने आप को हैप्पी मैन बनाए, लाफिंग बुद्धा बनाए। क्रोध का त्याग करके हर समय प्रसन्न हृदय का मालिक होना अपने आप में सर्वश्रेष्ठ योग है। क्रोध की तरह ही काम को लें । काम शरीर की प्रकृति है, संसार का आधार है। काम की अधिकता व्यक्ति को व्यभिचारी और असंयमित बनाती है। काम इतना बदतमीज़ है कि इसने आँख, नाक, कान - सबको विकृत बना रखा है। काम माया का मालिक है । काम का मायाजाल ही कुछ ऐसा है कि जानवर हो या इंसान, सब खुद-बखुद जाकर इसमें उलझ जाते हैं। यही वह तिलिस्म है, जिससे बाहर निकलना दुरूह है। हालांकि विकृत मार्ग से गुज़रते रहने पर अन्ततः मनुष्य उकता जाता है। वह कई बार सोचता है कि वह अपने संवेगों और कमजोरियों पर आत्म-विजय करे, पर खुजली का रोगी खुजलाने के लिए मानो मज़बूर हो जाता है। आखिर यह छूटे भी तो कैसे क्योंकि जब वह व्यक्ति यह निश्चय ही न कर पाए कि वह आत्मा है, उसे मुक्त होना है, चाहे जो बाधाएँ आएँ, पर उनसे पार लगना है। अंकुश 28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003866
Book TitleDharm me Pravesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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