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प्रयोग से गुज़रें और हर व्यक्ति की शुद्धि और मुक्ति पर ध्यान दें।मात्र देश की आज़ादी ही काफी नहीं है जब तक जनमानस परतंत्र है। विभिन्न सम्प्रदायों ने अपने-अपने अनुयायियों को धर्म के नाम पर अलग-अलग तरह की बेड़ियाँ पहना दी हैं। हम बेड़ियों को दरकिनार करें और अपने जीवन के परम सत्य एवं लक्ष्य को खुद शोधे । हम गुणानुरागी बनें और हर धर्म की अच्छाइयों पर गौर करें। हर धर्म में अच्छे संत, विचारक और चमत्कारी लोग हैं। हम हर प्रकार के दुराग्रहों से मुक्त हों, गुणानुरागी बनें, नये सार्थक सकारात्मक नज़रिये से जीवन-जगत् को निहारें, स्वयं की मानसिकता को सुधारें।
संसार के सारे धर्मों में अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है । हिंसा को धर्म की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। अहिंसा का भाई है सत्य । सत्य से बड़ा न कोई धर्म है, न ही धर्म का कोई स्वरूप। वाणी का सत्य ही सत्य नहीं है अपितु जीवन, जगत् और व्यवहार का सत्य भी सत्य है। सबसे बड़ा सत्य तो मनुष्य के अन्तरजगत् में है। अपने को भुलाकर, औरों के सत्य को जानने और जीने की कोशिश महज मूढ़ता है। __तीन चीजें हैं - गूढ़ता, मूढ़ता और रूढ़ता। बिना जाने अथवा बिना सोचे-समझे किसी चीज़ को अपनाना या उसका त्याग करना मूढ़ता है। बिना समझे-जाने किसी मान्यता पर अन्धश्रद्धा करना रूढ़ता है। गूढ़ता को तो उसकी अतल गहराइयों में जाकर ही जियापहचाना जा सकता है। धर्म हो या अध्यात्म अथवा विज्ञान, सभी गूढ़ता की महागुहा में रहते हैं।
जगत् को जानने के लिए विज्ञान है और जीवन को जानने के लिए अध्यात्म है। मनुष्य भले ही खुद को, अस्तित्व की गूढ़ता को क्यों न
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