________________
हम अपने मन की विकल्प-धारा, मन की भावना को कुछ रचनात्मक मोड़ दें, ताकि हम केवल हमारे जीवन को ही नहीं, वरन हमारे बोल-बर्ताव को भी, हमारे रहन-सहन और आचार-व्यवहार को भी सौम्य और मधुर बना सकें। जो ध्यान करके भी माया रखता है, प्रपंच से गुजरता है, अपने क्रोध पर काबू नहीं रखता, वह ध्यान से गुजर कर भी ध्यान से नहीं गुजर रहा। वह माया की तरह ही ध्यान का जंजाल पाल रहा है। तुम ध्यान धरो और वाणी में सौम्यता न आए, तुम्हारे व्यवहार में मधुरता न आए, तुम्हारे चित्त में सहिष्णता न उतरे तो फिर ध्यान हआ ही कहाँ? तुम ध्यान धरो पर अगर तुम अपने जीवन को कोई व्यवस्था न दे पाओ, कोई संयम और अनुशासन न दे पाओ तो हमारे लिए यह ध्यान से भी अधिक विचारणीय है। तुम ध्यान की धारा को बदलो, चिंतन की धारा को बदलो, अपने बोल-बर्ताव की धारा को बदलो। ध्यान के द्वारा हमारा ऐसा मनोपरिवर्तन हो। हम चेतना की उच्च ऊर्जा और शक्तियों के स्वामी हो सकें तो सौभाग्य! कम-सेकम मन के अन्धतमस् में ज्योतिर्मय दीप तो उतर जायें। सोच की धारा को, बोल-बर्ताव की धारा को नया रूप, नया आयाम, नई दिशा देने के लिए ही चार चरण हैं- पहला है मित्रता, दूसरा है प्रसन्नता, तीसरा है दयालुता तथा चौथा है मध्यस्थता। ये चार चरण धर्म-ध्यान के चरण हैं। ध्यान के लिए रसायन हैं ये। ध्यान को पौष्टिकता देते हैं ये। ___पहला है : मित्रता। मित्रता के मायने हैं स्वयं को छल-प्रपंच से मुक्त करना; सारे संसार के प्रति, प्राणि-मात्र के प्रति, अखिल ब्रह्माण्ड के प्रति प्रेमपूर्ण हो जाना। यहाँ मित्रता के मायने व्यक्ति से व्यक्ति के बीच नहीं वरन व्यक्तिवादिता से हटकर सम्पूर्ण विश्व के साथ सरोकार हो जाना है। प्रेम हो ऐसा जैसा सन्त वैलेंटाइन का रहा। आज हम जिस वैलेंटाइन्स डे को मनाते हैं उसका रूप हमने संकीर्ण और विकृत कर डाला है। वैलेंटाइन्स डे का मतलब किसी प्रेमी-प्रेमिका के प्रति प्रेम प्रगट करना नहीं है वरन् सारी मानवता के प्रति, प्राणी-मात्र के प्रति स्वयं का मित्र हो जाना है। वैलेटाइन्स डे वास्तव में विश्व-मैत्री का, विश्व-प्रेम का दिवस है। तुम विश्व-मित्र हो जाओ, सारा विश्व तुम्हारा हो जायेगा। पृथ्वी भर को अपना परिवार बना लो, पूरी पृथ्वी तुम्हारी हो जायेगी। 'मेरा परिवार' के संकीर्ण दायरे
४२ / ध्यान का विज्ञान
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org