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प्रवेश बारिस थम गई और बादल छंट गए। नीले आकाश में पूर्णिमा का चाँद उग आया।
क्या है यह?
यह है ध्यान का परिपाक ! ध्यान पहुंचाता है हमें वहाँ, जहाँ कुछ नहीं' है- सिवा शून्य के, परिपूर्ण चेतना के। यह मार्गरहित मार्ग है, द्वाररहित द्वार है। मृत्यु के भय से छूटने के लिए, आनन्द का वरदान पाने के लिए ध्यान आत्म-ज्ञान की चाबी है।
विकल्पों से मुक्त होने के लिए संकल्प है। संकल्पों से ऊपर उठने के लिए ध्यान है। स्वयं की संकल्प-विकल्प-रहित शान्त-सानन्द दशा ही व्यक्ति की पूर्णता है। तब ऐसी घड़ी आती है कि बारिश और बादल विलीन हो चुके होते हैं और नीले आकाश में पूर्णिमा का चाँद मुस्कुरा उठता है। ऐसा होना स्वयं से साक्षात्कार और आनन्द को उपलब्ध होना है।
पुस्तक प्रेम से सपर्पित है उन्हें जो अंधेरे में खड़े प्रकाश की प्रतीक्षा कर रहे हैं। पुस्तक के शब्द शून्य में विलीन हो जाएँ और हम सबका निस्सीम में प्रवेश।
- चन्द्रप्रभ
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