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________________ ध्यान ः साधना और सिद्धि हैं, लेकिन तुम अपने आपको, ध्यान के प्रयोग को, ध्यान की आंतरिक गहराई को महज विधि-सापेक्ष नहीं बना देना, हर विधि अन्तर-प्रवेश के लिए होती है। अन्तःकरण में उतरने के बाद हर विधि अर्थहीन हो जाती है । विधि मार्ग पर चलने की तरह है । जैसे सीढ़ी ऊपर के तल तक पहुँचने के लिए होती है वैसे ही विधि है । मंजिल पर कदम रखने के बाद तो सीढ़ी पर ध्यान ही नहीं दिया जाता। निश्चय ही ध्यान अध्यात्म का एक दिव्य मार्ग है, लेकिन इससे भी बड़ा सत्य यह है कि ध्यान मार्ग-रहित मार्ग है। द्वार-रहित द्वार है, विधि-रहित विधान है। संबोधि-ध्यान किसी विधि का नाम नहीं, वरन् बोधपूर्वक ध्यान में उतरने का नाम ही संबोधि-ध्यान है। संबोधि-ध्यान हर पल तुम्हें इस बात का स्मरण दिलाता है कि तुम्हारा सम्यक् बोध ही तुम्हारा ध्यान है । ध्यान का सतत स्मरण रहना ही सम्यक् बोध को, संबोधि अपने आप में जीना है । संबोधि-ध्यान तो एक ऐसी विशाल छतरी है कि जिसके तले कई-कई नये प्रयोग हुए हैं और कई-कई विधियों को आनन्द-भाव से बसेरा मिला है । जीवन का कोई भी मार्ग क्यों न हो, फिर चाहे उसका प्रतिपादक कोई भी क्यों न रहा हो, अपने लोगों को स्वीकार कर लेना चाहिये, जिससे भी हमारे जीवन में कुछ फलित होता हुआ नजर आये । दुनिया का कोई भी मार्ग उपयोगी हो, उसे स्वीकार करने में कैसा संकोच । आखिर हर उपयोगी वस्तु मानवता की, प्राणिमात्र की आवश्यकता है। जिन्होंने भी ध्यान के विविध प्रयोग दिये हैं, उनका उनके प्रयोग के प्रति आग्रह हो सकता है जबकि अपने लोगों को उस मुक्त आकाश की तरह होना चाहिये जिसमें हर पंछी को उड़ान भरने की आजादी हो । मेरा न किसी विधि का आग्रह और न किसी पंथ का और न ही किसी ग्रन्थ का । तुम विराट दृष्टि रखो, दुनिया में अच्छे मार्गों की, अच्छे लोगों की कमी नहीं है, जो भी तुम्हें अपने जीवन के मुआफिक लग जाये तो यह सोचे बगैर कि तुम उस पंथ के अनुयायी हो या नहीं, स्वीकार कर लेना । व्यक्ति की विशाल दृष्टि में ही विशाल विश्व और विशाल संभावनाएँ छिपी हुई हैं। अच्छी बात तो दुश्मन की भी क्यों न हो, ग्रहण करने योग्य होती है। महत्व यह नहीं है कि कहीं योगासनों का महत्व स्वीकार किया गया है या नहीं । तुम्हारे लिए महत्व इस बात का है कि योगासन जीवन के लिए अनिवार्य है या नहीं । अपने लोग नयी सहस्राब्दी की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। जिस तरह से रक्तचाप की, हृदय-रोग की, मानसिक तनाव की निरन्तर बढ़ोतरी देखने को मिल रही है; उसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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