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संकेत
मनुष्य के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए जितनी आवश्यकता सम्यक् भोजन एवं औषधि की है, आध्यात्मिक अभ्युदय के लिए उतनी ही ध्यान और योग की । प्रस्तुत ग्रन्थ 'ध्यान : साधना और सिद्धि' पूज्यश्री द्वारा ध्यान-साधकों को संबोधित प्रवचन एवं ध्यानयोग-साधना के अभ्यास-क्रम का संचयन है।
‘ध्यान : साधना और सिद्धि' पूज्यश्री का वह दर्शन है, जिसमें मनुष्य की मानसिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान प्ररूपित है। उनके वक्तव्य किसी धर्म के प्रवचन नहीं, वरन् अन्तर्दृष्टि से जीवन की गहराई में उतरकर आत्मसात् किए अनुभव के मुक्ता-कण हैं । वे मधुरिम हैं, उनकी वाणी
और अनुभूति मधुरिम हैं । इससे भी ज्यादा मधुरिम है उनका मौन, शान्तचेता स्वरूप।
हम एकाकार हों सीधे मूल वाणी के साथ, उन्मुक्त/आनन्द-भाव से।
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