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________________ ध्यान वही, जो घटे जीवन में ६१ या विषपायी, यह तो मनुष्य की अपनी अन्तरदृष्टि पर ही निर्भर करता है। व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण या शूद्र नहीं होता । जन्म से मनुष्य, केवल मनुष्य होता है । वह जैसा जीवनयापन करता है, उसी के अनुरूप ब्राह्मण या शूद्र बनता है । तुम उसे ब्राह्मण कैसे कहोगे जिसके कर्म शूद्र के हैं और उसे शूद्र कैसे कहोगे जिसका दिया भले ही माटी का हो, पर उसका जीवन ज्योतिर्मय है । उस स्वर्ण दीप का क्या करें, जिन दियों में बाती जगमगाती न हो। ऐसे स्वर्ण दीप केवल अलमारी में रखने के काम आते हैं। दैदीप्यमान दीप अलमारी में नहीं, देहरी और मुंडेरों पर सुशोभित होते हैं । दुनिया में ऐसे दियों की कमी नहीं है जो अलमारियों में रखे जाते हैं और किसी मेहमान के आने पर वे दिए चाय के प्याले बन जाते हैं और फिर से अलमारी में सजा दिये जाते हैं। दीपक सोने का हो या माटी का, वही दीपक मूल्यवान है जिसमें बाती सुगबुगाती है, जो ज्योतिर्मयता का संवाहक है। मनुष्य का जीवन ज्योतिर्मय हो । ध्यान ज्योतिर्मयता का ही प्रयोग है । मनुष्य को ज्योति-पथ की ओर चार कदम बढ़ाने हैं। हमें सूरज की ओर अपनी नजर उठानी है । तुम अपनी दृष्टि सदा सूरज की ओर रखो, ताकि तुम्हें अपनी परछाई दिखाई न दे । तुम सत्य की ओर बढ़ो, प्रकाश की ओर; असत्य और अंधकार स्वतः तुमसे दूर होता जाएगा। एक कदम ही सही, प्रतिदिन प्रकाश की ओर अवश्य बढ़ जाए, ऐसा प्रयास हो। ज्योतिर्मय संघ का निर्माण ऐसे ही होता है । लोगों का समूह तो बहुत जल्दी बन सकता है, जाति और कौम का विस्तार भी हो सकता है, लेकिन वह जाति, वह कौम, वह समूह, वह समाज बनना कठिन है जिसमें हर बाती प्रकाश की लौ से संस्पर्शित हो। सौ बुझे हुए दिओं को एक जलता हुआ दीप जलाने की क्षमता रखता है । एक जगा हुआ व्यक्ति अपनी एक चुटकी की आवाज से सौ लोगों को जगा सकता है, लेकिन सौ सोए हुए लोग एक जागे हुए को सुला नहीं सकते। समाज कितना बड़ा है, यह बात मायने नहीं रखती । महत्त्व इस बात का है कि जितने लोगों का समाज है, वे लोग कैसे हैं । 'चंदन की चुटकी भली।' चुटकी अगर चंदन की है, तो भी काफी है, बाकी तो रेगिस्तान के टीलों का क्या करें ! मैंने यदि सौ दिए भी जला दिए, तो मैं दावा कर सकता हूँ कि मानवता के अभ्युत्थान के लिए अपनी ओर से इतना काफी होगा । एक दीया सैकड़ों-हजारों दीयों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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