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विचार-शक्ति का विकास
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होना चाहिए, सत्य स्वीकार होना चाहिए। जहाँ भी आग्रह होगा, वहाँ महावीर का अनेकान्त और स्याद्वाद खंडित होगा । आग्रह से नया पक्ष और नया वाद जुड़ेगा। कोई भी आग्रह सापेक्ष हो सकता है, निरपेक्ष नहीं । कुंदकुंद ने कहा 'सव्वणय पक्ख रहिदो भणिदो जो सो समयसारो।' उन्होंने समयसार नामक अद्भुत और अनूठा ग्रंथ लिखा था। जब उनसे पूछा गया कि क्या है यह समयसार? सार क्या है ‘समयसार' का? तब कुंदकुंद ने यह पंक्ति कही कि जो सारे नये पक्षों से, मत-मतान्तरों से रहित है, वही समयसार है । और जो समयसार है, वही सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान है।
सत्य का भला आग्रह ! आग्रह करने से तो सत्य भी अवरुद्ध हो जाता है। सत्य का तो ग्रहण होना चाहिए, सत्याग्रह नहीं। सत्याग्रह तो राजनीति है। सत्य-ग्रहण साधना है।
महावीर ने दृष्टान्त दिया है—एक हाथी, छह अंधे । अंधापन क्या है, अपनी आँखों पर आग्रह की पट्टी बाँध लेना । हाथी सत्य का प्रतीक है, अंधापन आग्रह-कदाग्रह का। जिस अंधे के हाथ जो चीज लगेगी, वह उसी को सत्य मानेगा। जिसे हाथी की पँछ हाथ लगी, वह कहेगा हाथी रस्से जैसा है। जिसे पाँव हाथ लगेगा, वह कहेगा हाथी खंबे जैसा है । जिसे सूंड हाथ लगेगी वह कहेगा हाथी अजगर जैसा है और जिसे कान हाथ लगा, उसने कहा, हाथी पंखी जैसा है।
__ आप ध्यान दें इस बात पर कि सभी की बात क्या गलत है ? नहीं, सभी की बात सही है, पर सभी का सत्य अधूरा है । सबकी बातों को सम्मिलित कर दें, तो पूर्ण सत्य विकसित हो जाएगा।
आग्रह-कदाग्रह की दृष्टि छूटनी चाहिए। गुणग्राहिता की भावना हृदय में स्थापित हो जाए। कोई भी शत-प्रतिशत पूर्ण नहीं होता, लेकिन गुणग्राहिता होने पर तुम अवगुणी में भी गुण खोज निकालोगे और कुछ ग्रहण कर ही लोगे। अन्यथा आग्रह रखने पर नब्बे गुण ठुकरा दोगे और दस अवगुणों पर ध्यान केन्द्रित हो जाएगा।
विचार शक्ति ध्यान की शक्ति बन जाए और ध्यान की शक्ति जीवन की शक्ति बन जाए। विचार-शक्ति आपके जीवन की मूल प्रेरिका बन जाए, जीवन की आधारशिला बन जाए । यहाँ हम ध्यान का प्रारम्भिक पाठ सीख रहे हैं । असली ध्यान तो घर में, जीवन में, वाणी में, व्यवहार में, सबमें ध्यान की कसौटी होगी। वह ध्यान ही क्या, जो हमारे व्यवहार को बदल न पाए । वह ध्यान ही कहाँ, जो जीवन का व्यवहार
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