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________________ विचार-शक्ति का विकास ४७ शंका-आशंका दीमक है, घुन है । जिसके भी जीवन-वृक्ष में लग जाए, पता ही नहीं चलता, कब वृक्ष खोखला बन जाता है । आदमी का जीवन तो खुली डायरी की तरह हो, गांधी की डायरी की तरह, जिसे पढ़ने के लिए संकोच न करना पड़े। जो है, साफ है । तुम्हें देखकर, तुम्हारे व्यवहार को देखकर कोई संदेह करे, यह वाजिब नहीं है। हम भी अपनी ओर से किसी के प्रति संदिग्ध न हों । जो जैसा है, उसकी वह जाने, हमारी आँखें औरों में नहीं, अपने-आप में हो। प्रिय साध्वी ईशून का प्रसिद्ध वचन है ‘इफ यू लव, लव ओपनली ।' छिपकर क्या करना । आदमी खुली किताब हो।। संदेह के कारण ही, बचपन में आपने वह कहानी पढ़ी होगी, जिसमें एक ग्रामीण महिला अपने बच्चे को पालने में सुलाकर पानी भरने जाती है । पालतू नेवला बच्चे के पास ही खेल रहा था। तभी उस ओर साँप आया। वह पालने की ओर ही बढ़ रहा था। नेवले ने देखा और बच्चे को बचाने के लिए साँप से भिड़ पड़ा । साँप मारा गया। नेवला लहूलुहान था। मालकिन को घर की देहरी तक आया देख, नेवला मालकिन की ओर दौड़ा गया। मालकिन को लगा कि उसने कहीं उसके बच्चे को तो नहीं मार दिया ! उसके मत्थे पर रखा मटका, इस संदेह के चलते गिर पड़ा और नेवला मारा गया। वह दौड़ी-दौड़ी कमरे में गई । बच्चा सकुशल था। सर्प मरा पड़ा था। गृहिणी समझ गई, पर उसे बहुत पश्चाताप हुआ। जिसने उसके बच्चे को बचाया, उसकी मौत उसके हाथों देखा, संदेह का परिणाम ! ध्यान रखो - जैसे ही किसी तत्त्व के प्रति आशंका आएगी, हृदय से विश्वास उठ जाएगा। विश्वास उठने पर आशंका वह सब देगी, जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। इतिहास की चर्चित कहानी है जब महारानी चेलना अपने पलंग पर सोई है सर्दी की ठिठुरन में ठिठुरती हुई । महाराज भी समीप ही सो रहे हैं । चेलना नींद में ही बुदबुदाती है, 'ओह, उनका क्या हो रहा होगा।' सम्राट के कानों में शब्द पड़े, आशंका का ज्वार उमड़ आया ।आशंका आते ही सम्राट खड़ा हो गया। विचार आने लगे अवश्य ही महारानी के किसी अन्य के साथ संबंध हैं, अन्यथा रात्रि में सोए-सोए किसी को स्मरण करने का क्या अर्थ । यह चेलना जरूर व्यभिचारिणी है।' शयनागार से सम्राट बाहर निकल आया। उसने अपने बेटे से कहा, 'अभयकुमार ! इस राजमहल को आग लगा दे, अभी, इसी क्षण।' अभयकुमार ने सोचा, सम्राट पिता को क्या हो गया। भीतर मेरी मां महारानी चेलना हैं, लेकिन पिता का आदेश ! पिता जो सम्राट भी है आदेश मानना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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