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________________ १३८ ध्यान : साधना और सिद्धि दाहिनी पैर के अंगूठे, अंगुलियाँ, तलवा, पंजा, एड़ी, टखना, पिंडली, घुटना, जाँघ, नितंब, कटि-प्रदेश को क्रमशः शिथिल करें । इसी क्रम से बाएँ पैर को शिथिल करें। फिर क्रमशः दायें और बायें हाथ के अंगूठे, अंगुलियों, हथेली, पृष्ठ भाग, कलाई, हाथ, कोहनी, भुजा एवं कंधों को शिथिलता का सुझाव दें । तदुपरान्त पेट, पेट के अंदरूनी अवयव, विसर्जन केन्द्र, बड़ी आँत, छोटी आँत, पक्वाशय, आमाशय, किडनी, लीवर आदि, हृदय, फेफड़े, पसलियाँ, अन्न-नली, श्वास-नली, पूरी पीठ, रीढ़ की हड्डी, ईड़ा, पिंगला और सुषम्ना नाड़ियाँ, समस्त स्नायु, कंठ और गर्दन के भाग को शिथिल करें। इसके बाद चेहरे के एक-एक अंग-ठुड्डी, होंठ, गला, आँख, कान, नाक, ललाट, सिर, बाल, मस्तिष्क के स्नायु और कोषाओं को भीतर तक देखते हुए शिथिल करें । शरीर के तादात्म्य को तोड़ें । निर्भारता का अनुभव करें। अपने आत्म-प्रदेशों को स्थूल काया से बाहर अनन्त आकाश में विहार करते हुए देखें । स्वयं को निरंतर विराट होकर अखिल ब्रह्माण्ड में फैलता हुआ अनुभव करें। धीरे-धीरे अपने विराट हुए अस्तित्व को समेटना प्रारम्भ करें और एक चमकते प्रकाश के अणुरूप में, बिंदुरूप में इस तरह काया में लौटें जैसे हमारा नया जन्म हुआ हो । गहरी साँस के साथ चेतना का संचार करें लेकिन तनाव-मुक्ति बरकरार रखें। तनावोत्सर्ग ५ मिनट कायोत्सर्ग की ही तरह शरीर के एक-एक अंग का मानसिक निरीक्षण करें, लेकिन शिथिलता के स्थान पर प्रत्येक अंग में प्रसन्नता और मुस्कुराहट को विकसित करें। पैर के अंगूठे से प्रारम्भ कर सिर तक यानी रोम-रोम को प्रमुदितता और अन्तर्-प्रसन्नता का आत्म-सुझाव दें । अंत में अपने चेहरे पर विशेषकर होंठ, आँख और मस्तिष्क पर आनन्द-भाव को केन्द्रित करें और मन-ही-मन मुस्कुराएँ-खिलखिलाएँ। यदि अब भी तनाव महसूस हो, तो खिलखिलाकर हँसते हुए लोटपोट हो जाएँ। आत्मनिरीक्षण करें और देखें कि यदि अब भी तनाव बाकी है तो हास्य को और विकसित करें और तब तक हँसें, खिलखिलाएँ जब तक थक न जाएँ। हँसते हुए लोटपोट हो जाना अपने आप में तनाव-मुक्ति का सबसे सरल साधन है। जो हर हाल में प्रसन्न, प्रमुदित रहते हैं, वे तनावरहित होते हैं । मनुष्य के शरीर में ६५० मांसपेशियाँ होती हैं, एकमात्र हँसने से ही दो-तिहाई मांस-पेशियों के साथ शरीर की सभी कोशिकाएँ एवं केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र प्रफुल्लित हो उठता है और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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