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________________ १२० ध्यान : साधना और सिद्धि (ग) स्कंध-संचालन : हाथों को कोहनी से मोड़कर अंगुलियों की अंजलि-सी बनाकर कंधों पर रखें और कोहनियों के साथ कंधों के जोड़ों को तीन बार आगे से पीछे की ओर तथा तीन बार पीछे से आगे की ओर गोलाकार घुमाएँ । ध्यान रहे कि इस पूरी प्रक्रिया में अंगुलियाँ कंधों पर रखी रहें। (घ) गर्दन-संचालन : गर्दन संचालन क्रिया के तीन चरण हैं पहले चरण में साँस भरें, गर्दन को सामने की तरफ झुकाकर ठुड्डी को कंठ-कूप से लगाने का प्रयास करें । फिर धीरे-धीरे साँस छोड़ते हुए गर्दन पीछे की तरफ ले जाएँ और सिर का पिछला हिस्सा पीठ से लगाने का प्रयास करें । तीन बार आगे-पीछे इस क्रिया को दोहराएँ। द्वितीय चरण में गर्दन को बारी-बारी से तीन-तीन बार दायें-बायें घुमाएँ । तृतीय चरण में गर्दन को पूरा गोल घुमाएँ । तीन बार दाहिनी तरफ से घुमाने के उपरांत तीन बार बायीं तरफ से इसी तरह गोल घुमाएँ। इस क्रिया को सावधानीपूर्वक धीरे-धीरे करें । गर्दन में कोई झटका/जर्क न आने पाए। (ङ) कटि-संधि संचालन : यह कमर एवं रीढ़ का व्यायाम है। खड़े हो जाएँ । इसे दो चरणों में पूरा किया जाता है। पहले चरण में पैरों को परस्पर जोड़े रखें। दोनों हथेलियों को कमरबंध पर रख लें और फिर कमर के निचले हिस्से को तीन बार दायीं ओर से तथा तीन बार बायीं ओर से गोलाकार घुमाएँ। दसरे चरण में पाँवों के बीच डेढ़ फुट की दूरी रखते हए हाथों को पंखों की तरह फैला दें और शरीर के ऊपरी हिस्से को क्रमशः दायीं और बायीं ओर से पीछे की तरफ मोड़ें। ध्यान रहे शरीर का नीचे का भाग स्थिर रहे । २. स्थिर दौड़ __ शरीर के आलस, प्रमाद और तमस् को मिटाने के लिए स्थिर/खड़ी दौड़ की जाती है। इसे पारम्परिक शब्दावली में कदमताल कहते हैं और प्रचलित भाषा में जोगिंग । इससे शरीर में स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार होता है । इसके लिए अपने आसन पर ही खड़े-खड़े दौड़ लगाएं । धीरे-धीरे गति बढ़ाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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