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ध्यान : साधना और सिद्धि
रूपांतरित करें जीवन को जीवन को ही स्वर्ग बनाएँ।
मानवता के मन-मंदिर में, सम्बोधि का दीप जलाएँ। अन्तर्-शून्य उजागर करके, आनन्द-अमृत से भर जाएँ। भीतर की नीरवता पाकर, ध्यान-प्रेम की बीन बजाएँ। अपने मन की परम शान्ति को, सारी धरती पर सरसाएँ।
शरीर-शुद्धि योगाभ्यास
१५ मिनट प्रार्थना के बाद हम योगाभ्यास करें । (योगाभ्यास शारीरिक और मानसिक तनाव-मुक्ति के लिए सहज-सरल उपयोगी क्रियाएँ हैं । ध्यान में उतरने के लिए दो बातें सहायक हैं
१. शारीरिक जड़ता की समाप्ति । २. शारीरिक स्थिरता की प्राप्ति ।
ध्यान-मार्ग पर पहले-पहल कदम बढ़ाने वालों का न केवल चित्त चंचल होता है, वरन् उनमें शारीरिक स्थिरता और स्वस्थता का भी अभाव होता है । ध्यान की गहराई में जाने की बजाय तंद्रा में डूब जाने की संभावना रहती है।
शरीर माध्यम है और माध्यम का स्वस्थ, निर्मल और अनुकूल होना आवश्यक है। ध्यान की प्रारंभिक अवस्था में दैनंदिन अभ्यास के लिए सुबह-शाम दोनों समय लगभग एक घंटे तक ही आसन में तनाव-रहित स्थिरतापूर्वक बैठने की क्षमता साधक में होनी वांछित है । यह तभी संभव है जब हमारे शरीर के अंग-प्रत्यंग में पर्याप्त लोच हो, कोई जकड़न न हो, स्नायविक शांति हो और शरीर के जोड़ों तथा नस-नाड़ियों में दूषित वायु या अन्य विकार अवरुद्ध न हों । प्राणवायु के आगमन, दूषित वायु के निर्गमन
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