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________________ 5 आतिथ्य सत्कार का आनन्द कहते हैं, पिता द्वारा आदिष्ट होने पर नचिकेता अपनी विशिष्ट शक्ति और विशिष्ट विद्या के द्वारा यमलोक गमन करता है । नचिकेता द्वारा यमलोक की यात्रा आज के युग लोगों के लिए आश्चर्य और चर्चा का विषय हो सकती है, लेकिन प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों की संतानों को ऐसी विद्याएँ आत्मसात् होती थीं जिनके जरिए वे गगन-विहार किया करते थे । अपने साधारण शरीर को छोड़कर, सूक्ष्म शरीर द्वारा अन्य लोक की तरफ गमन कर जाया करते थे । गुरु- कृपा से, पितृ-कृपा से, मातृ-कृपा से व्यक्ति को ये सिद्धियाँ उपलब्ध हो जाया करती थीं। ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं जिनमें इस बात को स्पष्ट किया गया है । भगवान महावीर के शिष्य गणधर गौतम सूर्य किरणों का सहारा लेकर अष्टापद अर्थात् कैलाश पर्वत की ओर गए थे। इसी तरह अर्जुन देवलोक में विशिष्ट विद्याओं की साधना के लिए गए थे। मेरी साधना में जिस आत्मयोगी साधिका काकी माँ ने मदद की थी, वे भी स्थूल शरीर को गुफा में छोड़कर महाविदेह - क्षेत्र की यात्रा के लिए जाया करती थीं। उनकी कृपा से कभी मुझे भी इस तरह का सौभाग्य मिला हुआ है। जिस तरह से उन लोगों को ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त थीं, उसी तरह नचिकेता को भी सिद्धियाँ उपलब्ध रही होंगी, तभी तो वे सशरीर यमलोक पहुँच पाए होंगे। नहीं तो यह प्रश्न उठेगा कि यदि पिता ने यह आदेश दे दिया कि जाओ, मैं तुम्हें मृत्यु को सौंपता हूँ, तो सशरीर यमलोक जाना कोई आसान बात तो नहीं है। या तो नचिकेता आत्मदाह करे या फिर आत्महत्या। मृत्यु को प्राप्त हुए बगैर कोई व्यक्ति यमलोक तक, यमराज तक पहुँचेगा तो आखिर कैसे ? तो ऐसा लगता है कि नचिकेता के पास अवश्य ही ऐसी शक्ति थी जिससे वे सशरीर यमलोक तक पहुँच पाए। जब वे यमलोक के द्वार पर पहुँचे तो वहाँ निश्चित रूप से द्वारपाल भी होंगे। नचिकेता ने द्वारपालों से कहा भी होगा कि मैं साक्षात् मृत्यु से Jain Education International 54 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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