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________________ का होगा, वही राह अपनाएगा। हिन्दू यज्ञ का आयोजन करेगा। यज्ञ में अग्नि जलेगी, घी की आहुति दी जाएगी, मंत्रोच्चार होगा। यज्ञ की हमारे यहाँ सदियों से परंपरा चली आ रही है। यज्ञ करना-करवाना शुभ माना जाता है। पंडित यज्ञ करते हैं। सेठसाहूकार यज्ञ करवाते हैं। यज्ञ का प्रतिफल किसे मिलेगा, इसके पीछे भावना प्रधान होती है। यूँ तो पंडित प्रायः यज्ञ करते ही रहते हैं, लेकिन सबको प्रतिफल मिलेगा, यह सुनिश्चित नहीं है। केवल रोजाना यज्ञ करने मात्र से प्रतिफल नहीं मिलता। पंडित यज्ञ करते हैं, बदले में उन्हें दान-दक्षिणा मिलती है। जो सेठ-साहूकार यज्ञ करवाते हैं, प्रतिफल के अधिकारी वे हो जाते हैं। वे दैवीय शक्तियों का अनुग्रह पाने के लिए ऐसा करते हैं। इसके पीछे उनकी भावना प्रभु का आशीर्वाद पाने की होती है। कठोपनिषद् कहता है, संत उद्दालक ने विश्वजित-यज्ञ करवाया। इसके लिए कई कुण्ड बनवाए गए। ज्ञान के वे कुण्ड, जिनमें व्यक्ति अपने आपको नियोजित कर लेता है। ब्राह्मण ज्ञान अर्जित कर पंडित बनते हैं। फिरदेवी-देवताओं का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए यज्ञ करते हैं । युधिष्ठिर ने भी यज्ञ किया। राजसूय यज्ञ किया। इसी तरह ऋषि उद्दालक ने विश्वजित-यज्ञ का आयोजन किया। ब्राह्मण अपनी ओर से यज्ञ करे, तो वह महत्त्वपूर्ण होता है । जिसे यज्ञ का लाभ चाहिए, वह यज्ञ के द्वार पर आए। इसी शहर में एक बार महायज्ञ का आयोजन किया गया। शतचंडी महायज्ञ। हमें भी आमंत्रित किया गया। मैं वहाँ हर शाम जाता और जीवन के आध्यात्मिक कल्याण की बात करता। वहाँ लोग दिन में यज्ञ में आहुति देते। एक यज्ञ मैंने भी शुरू किया, लोगों के जीवन का कल्याण करने का यज्ञ। जीवन के निर्माण का यज्ञ, यज्ञ तो दोनों ही हैं एक घी की आहुतियों का यज्ञ है तो दूसरा जीवन की कमजोरियों और बुराइयों को त्यागने का यज्ञ। जीवन-निर्माण का यज्ञ हो, तो ही अन्य किसी यज्ञ को करवाने की सार्थकता है। जिसे फल की चाहना है, वह यज्ञ का आयोजन करे। यज्ञ की पूर्णता तभी होती है, जब यज्ञ के बाद ब्राह्मणों को उपयुक्त दान-दक्षिणा दी जाए। सो, महर्षि उद्दालक ने अपना सारा धन दान में दे दिया। सृष्टि की व्यवस्था ऐसी है कि हम देते हैं, तो वापस लौट कर आता है। बीज बोते हैं, तो फसलें लौटकर आती हैं। जैसे बीज बोएँगे, वैसी ही फसलें लौटकर आएँगी। बबूल के बदले बबूल और आम के बदले आम। यही नियम है। इसलिए दान भी अपने श्रेष्ठ का करें। ऐसा नहीं कि आपके पास कुछ फालतू का सामान रखा था, आप उसका दान कर दें। कहावत है कि बूढ़ी गाय गुरां ने दीजे, पुण्य नहीं तो आगी कीजे। कहते हैं, बूढी गाय गुरुओं या ब्राह्मणों को दे दीजिए, पुण्य मिले तो अच्छी बात है और अगर न भी मिले, तो कम-से-कम घर का 'छाती कूटा' तो दूर हुआ। 28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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