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रहने से कुछ नहीं होगा । सपने पूरे करने के लिए प्राणपण से जुटना पड़ता है शेखचिल्ली तो सोचता ही रहता है। शेखचिल्ली की कथा बड़ी मजेदार है। शेखचिल्ली सिर पर तेल की कुप्पी रखे कहीं जा रहा था । रास्ते में एक पेड़ देखकर उसके नीचे विश्राम के लिए रुक गया । उसने कुप्पी अपने पाँव के निकट रख ली। वह सो गया, आँख लग गई। स्वप्न देखने लगा । मन में लगातार उधेड़बुन चल रही थी - यह तेल बेचकर चार पैसे मिलेंगे। उन चार पैसों से चार अंडे खरीदूँगा । अंडे बेचकर कुछ पैसे एकत्र हो जाएँगे, तो मुर्गी खरीद लूँगा। फिर बहुत से अंडे हो जाएँगे। अंडे बेचकर कुछ और मुर्गियाँ खरीद लूँगा । धीरे-धीरे रोजाना बहुत से अंडे होने लगेंगे और मेरी आय बढ़ जाएगी। समय आने पर शादी कर लूँगा । किसी दिन पत्नी कहना नहीं मानेगी, तो एक लात मारूँगा। यह सोचकर उसने लात मारी और उसकी लात तेल की कुप्पी से टकरा गई। तेल नीचे गिर कर जमीन पर फैल गया। सारे सपने धूल में मिल गए। केवल ऐसे सपने देखने का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
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जीवन में कुछ करने व बनने के लिए सपने देखें, निर्णय भी लेवें; लेकिन उनकी पूर्ति के लिए मेहनत भी तत्काल शुरू कर दें । मेहंदी का रंग सात दिन रहता है, पर मेहनत का रंग जीवन-भर साथ देता है । देखेंगे, देखते हैं - ऐसा कहने से कभी किसी परिणाम को नहीं देख पाएँगे। परिवार हो या देश, हर स्थान पर कड़ी मेहनत से ही परिणाम मिलेंगे । यमराज यह सत्य स्थापित कर रहे हैं कि आत्म-तत्त्व को महज सूक्ष्म बुद्धि से हासिल नहीं किया जा सकता। अगर हमारा आचरण बुरा है, तो इस आत्मतत्त्व को प्राप्त नहीं किया जा सकता । सीधी-सी बात है । यमराज हमें आत्म-तत्त्व प्राप्ति के लिए जो पात्रता चाहिए, उस पात्रता को विकसित करने के बारे में बता रहे हैं । यमराज बता रहे हैं कि वे कौन लोग हैं जो इस आत्म-तत्त्व को प्राप्त नहीं कर सकते ? इस कड़ी में पहला व्यक्ति वह है जो अभी तक बुरे आचरण से निवृत्त नहीं हो पाया है। दुराचारी कभी आत्म-तत्त्व को प्राप्त नहीं कर सकता। वह प्रभु की कृपा का पात्र नहीं बन पाता । वह भी इस आत्म-तत्त्व को नहीं पा सकता, जो अशांत है । ऐसा व्यक्ति भी इस आत्म-तत्त्व को नहीं पा सकता, जो अपने मन और इंद्रियों पर संयम नहीं रख पाया है । चौथा वह व्यक्ति भी आत्म-तत्त्व प्राप्ति से वंचित रहेगा, जिसका मन स्थिर नहीं है ।
यमराज एक तरह से मनुष्य मात्र को जीवन जीने का रहस्य बता रहे हैं । आत्म-तत्त्व तो बाद की बात है । पहले तो स्वयं को शुद्ध करना आवश्यक है । जो दुराचारी है, अशांत है, संयम नहीं रख पा रहा, भीतर से अस्थिर है, वह आत्म-तत्त्व को प्राप्त नहीं कर सकता । आत्म-तत्त्व प्राप्ति की अनिवार्यता यही है कि हमें इन चारों कमजोरियों पर विजय प्राप्त करनी होगी। जो व्यक्ति बुरे आचरण से मुक्त नहीं हुआ है, जिसके जीवन में सदाचार की शक्ति नहीं है, वह आत्म-तत्त्व को कैसे प्राप्त कर
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