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नहीं दिया। उस समय सामने वाला व्यक्ति यही समझेगा कि आप उसे देखकर नाखुश हुए हैं। हमारी प्रसन्नता से हमारे सम्बन्धों में मधुरता आती है। अपने घर-परिवार में प्रसन्नता का ऐसा पेड़ लगाएँ जिसकी छाया पड़ौसी तक जाए ताकि हमारी प्रसन्नता का विस्तार पड़ौसी और समाज तक भी हो। बुझाएँ चिंता की चिंगारी
चिंता हमारी प्रसन्नता में सबसे अधिक बाधक है। यह काम ऐसा क्यों हुआ, ऐसा कैसे हो गया, मेरे साथ ऐसा कैसे हो सकता है, मैं तो उल्टे-सीधे काम करता ही नहीं फिर मुझे ऐसा परिणाम कैसे मिला, व्यक्ति के मन की यही उधेड़बुन चिंता है। जब भी मन में इस प्रकार के विकल्प जगें, उन्हें सहज छोड़ दें। जो होना था सो हो गया. हम अपने मन की शांति को क्यों भंग करें? चिंता तो चिता से भी ज्यादा खतरनाक होती है। चिता तो मरने
बाद जलाती है लेकिन चिंता से व्यक्ति जीते जी जलता रहता है। चिंता भी ऐसी कि उसका कोई हल नहीं है। समय ही उसका सबसे बड़ा हल है। पुत्र है, अगर वह लायक निकल गया तो ठीक और यदि नालायक निकला तो कैसी चिंता? समय पर छोड़ दें। तुम्हारी चिंता का उस पर कोई असर नहीं होने वाला। जीवन में जब जो होना होता है, वह होता है अत: व्यक्ति व्यर्थ की चिंताएँ न पालें।
जो चिंता से मुक्त रहता है और होनी को होनी मानकर स्वीकार कर लेता है, वही सदाबहार प्रसन्न रह सकता है। दूसरे फले, इसलिए न जलें
हमारी प्रसन्नता का दूसरा बाधक तत्त्व ईर्ष्या है। मैं कई दफा लोगों के घरों में देखा करता हूँ कि बहुओं के चेहरे लटके हुए हैं और सास भी अलग उदास है। दो सुखी दिल को दुखी करती है एक ईर्ष्या। जब भी दूसरे के विकास को देखकर अन्तर्मन में थोड़ी सी भी ईर्ष्या जगती है तो यह ईर्ष्या जीवन की प्रसन्नता को छीन लेती है। दो सुखी जेठानी-देवरानी ईर्ष्या के कारण दुखी हो जाती है।
दूसरा भले ही हमसे ईर्ष्या करे पर हम किसी से भी ईर्ष्या न करें। आप ईर्ष्या करके दो नुकसान उठाते हैं - एक तो आप अपना विकास नहीं कर पाते, सामने वाले के विकास को भी अवरुद्ध करने का प्रयास करते हैं। दूसरा यह कि ईर्ष्या के कारण आप हमेशा अवसाद, तनाव और घुटन से ग्रस्त हो जाते हैं। ईर्ष्या के चक्कर में पड़कर दूसरों का पानी उतारने का प्रयास रहता है। उसमें उसका कुछ अहित हो या न हो, तुम्हारा पानी जरूर उतर जाता है।
ईर्ष्या मत करो। तुम्हें जो मिला है, तुम्हारे भाग्य का मिला है, जो दूसरे के भाग्य में है, वह उसे मिला है। फिर ईर्ष्याग्रस्त क्यों होते हो? हम दुःखी इसलिये नहीं हैं कि ईश्वर ने हमारे लिए कुछ कमी रखी है, हम दुःखी हैं उन्हें देखकर जो सुखी हैं। औरों का सुख हमारे दुःख का कारण बन रहा है अन्तर्हृदय में जगी हुई ईर्ष्या की भावना से व्यक्ति भीतर ही भीतर जलता है और नष्ट हो जाता है। क्रोध छीने बोध हमारी प्रसन्नता को छीनने वाला एक अन्य तत्त्व है - हमारा गुस्सा। दस मिनट का गुस्सा आपकी
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