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काषाय वस्त्र धारण कर लिये। बुद्ध जैसे ही प्रव्रज्या-मंत्र सुनाने को उद्यत हुए तो राजकुमारों ने कहा, 'भगवन्, हम चाहते हैं कि आप हमें संन्यास दें, इससे पूर्व हमारे इस सेवक को संन्यास देवें।' बुद्ध ने कहा, 'तुमसे पूर्व इसे संन्यास देने का अर्थ है कि तुम लोग इसे पहले प्रणाम करोगे और यह तुम लोगों से बड़ा हो जाएगा। तुम सातों राजकुमारों को इसके सामने झुकना पड़ेगा।' राजकुमारों ने कहा, 'हम यही तो चाहते हैं। हम क्षत्रिय वंश के राजकुमार हैं और हम जानते हैं कि संत बनने के बाद भी हम अपने अहंकार को नहीं मिटा पाएँगे इसलिए आप इसे पहले संन्यास दें ताकि जिसने जीवनभर हमारी सेवा की है उसे पहले प्रव्रजित देखकर हम उसकी सेवा कर सकें और उसे प्रणाम कर सकें।'
जिन लोगों के भीतर इतनी विनम्रता होती है वे वास्तव में संन्यास के हकदार होते हैं। जिनका अहंकार गिरा और विनम्रता जगी, उनके भीतर साधना और मुक्ति प्रकट हो जाती है।
रज्जब रज ऊपर चढे. नरमाई ते जाण।
रोड़ा ठोकर खात है, करड़ाई के जाण। हल्की और नरम धूल सदा आसमान की ओर उठती है, वहीं कड़क पत्थर जीवन भर पाँवों की ठोकर खाते रहते हैं।
हम जब किसी के प्रणाम का जवाब आशीर्वाद की बजाय अभिवादन में देते हैं तो कुछ लोगों को अटपटा सा लगता है कि साधुओं को आशीर्वाद की बजाय प्रणाम करने की क्या जरूरत है ? लेकिन हमारी सोच है कि एक गृहस्थ किसी संत के चरणों में अपना सिर झुका सकता है तो क्या एक संत इतना भी विनम्र नहीं हो सकता कि गृहस्थ के लिये अपने दोनों हाथ जोड़ सके? अहंकार में भरकर दिये गये आशीर्वाद से अधिक प्रभावकारी है विनम्रता से किया गया अभिवादन। जीवन में विनम्रता, सरलता, कोमलता, सहजता और समरसता हो तभी जीवन में शांति उतरती है। शरीर में हो स्वास्थ्य, मन में हो आनन्द, बुद्धि में हो ज्ञान और अहंकार की वृत्ति में हो विनम्रता का प्रवेश । गुजरात में कहावत है - जे नमे ते सहुने गमे अर्थात् जो झुकता है वह सबका प्रिय होता है।
घर में रहने वाले लोगों का आपस में अहंकार टकराता रहता है लेकिन घर की एकता को वही कायम रख सकता है जो झुकने को तैयार है। दो में जो पहले झुकेगा वही महान् होगा। अकडू कभी महान् नहीं हो सकते। बुढ़ापे में कमर झुके इससे पहले हम युवावस्था में ही अपने मन और अहंकार को झुकाने की कोशिश करें। अहंकार के रूप अनेक ___ अहंकार कई तरह का होता है। किसी को जाति और कुल का बड़ा अहंकार होता है। मैं उच्च कुल में पैदा हुआ, यह नीच कुल में पैदा हुआ, यह मेरे सामने कुर्सी पर कैसे बैठ गया, यह दूल्हा गांव में घोड़ी पर बैठकर कैसे निकल गया इत्यादि । व्यक्ति के भीतर जाति का मद होता है। अरे, किसकी जाति अजर-अमर रही है! आज तुम जिस जाति से नफरत करते हो, पिछले जन्म में तुम उसी जाति के रहे होंगे। वस्तुत: जाति से नहीं बल्कि बड़प्पन से व्यक्ति ऊंचा होता है। जो अकड़ा हुआ रहता है उसे हम ढूंठ कहते हैं और जो फलों, पत्तों से लदा रहता है उसे पेड़ कहते हैं।
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