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हाथ में मानवीय मूल्य भी नहीं टिक पाते। वह अपनों के साथ तो जीना चाहता है परन्तु उन पर भी अपने अहंकार का आरोपण करने की कोशिश करता है और धीरे-धीरे वह स्वयं के जीवन का माधर्य ही खो बैठता है। ___ मेरे पास अभी कुछ दिन पहले एक महानुभाव आये। जिन्होंने स्वाभिमान के नाम पर कई थोथे अहंकार पाल रखे थे। कहने लगे, मेरे परिवार में सब लोग सम्पन्न हैं लेकिन मैं किसी का अहसान लेना नहीं गरज न करे तो मैं अपने भाइयों के घर नहीं जाता। मैं अपनी माँ से अलग हआ तो माँ ने एक मकान देना चाहा पर मैंने अपने स्वाभिमान को गिरने नहीं दिया और वह मकान नहीं लिया। उनकी पत्नी कहने लगी कि 'ये अपने स्वाभिमान के नाम पर किसी से भी मेलजोल नहीं बिठा पाते, इसी कारण सड़क पर आ गये हैं।' मैंने उन्हें समझाया कि स्वाभिमान के नाम पर ओढ़ रखे अहंकार के लिबास को उतार कर रखें और जीवन में सबसे घुलमिल कर विकास की मंजिल प्राप्त करें।
मैंने देखा है, लोग अपनी साख को बढ़ाने के नाम पर खुद तो अहंकार में जीते हैं और दूसरों की विनम्रता को चमचागिरी समझते हैं।
व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की भावना तो होनी चाहिये पर अति-आत्मविश्वास और मिथ्यामान अहंकार का रूप धारण कर लेते हैं। आदमी को चाहिये कि वह स्वाभिमान. सम्मान और अभिमान के बीच एक संतुलन बनाए । केवल अपनी इमेज बनाए रखने के नाम पर टिप-टॉप बने रहना और दोस्तों के बीच ऊँची-ऊँची बाते झाड़ते रहना किसी भी रूप में हमारे व्यक्तित्व का सद्गुण नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोग अपना अमूल्य समय, शक्ति और दिमाग को व्यर्थ ही गवाँया करते हैं।
अहंकार व्यक्ति के व्यक्तित्व को कंजूस भी करता है। चाहे किसी से प्रेम करना हो या किसी की प्रशंसा, कृतज्ञता-ज्ञापन करना हो या मैत्री-भाव आदमी इन सब मामलों में कंजूस बना रहता है। अगर कोई अहंकारी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को प्रभावी बनाना चाहता है तो इसके लिए जरूरी है कि वह अपने जीवन में मानवीयता, सहृदयता, जैसे गुणों को धारण करे। मैं तो जब भी किसी शख्स से मिलता हूँ तो सोचता हूँ कि किसी न किसी बात में वह मुझसे बढ़कर है और मैं वह सद्गुण उससे पाने का प्रयास करता हूँ। अच्छा होगा आदमी अपनी जिंदगी के घर से अहंकार को अटाले की तरह बाहर फैंक दे ताकि वह एक बेहतर इंसान बन सके। झुकता वही है, जिसमें जान है __ तुमने अपनी पत्नी से कहा कि आज ऐसा-ऐसा कर देना और अगर वह भूल गई तो तुम्हें गुस्सा आएगा क्योंकि तुमने कहा और उसने नहीं किया। इससे तुम्हारे अहंकार को चोट लगी और तुम उबल पड़े। व्यक्ति की अपेक्षा जब उपेक्षित होती है तब उसे गुस्सा आता है। व्यक्ति के अहंकार को चोट लगती है तो गुस्सा आता है। और तो और, जब उसका अहंकार असंतुलित होता है तब भी वह गुस्से से भर उठता है । याद रखें, ताला दो तरह से खुलता है - एक चोट से, दूसरा चाबी से। अहंकार और क्रोध हथौडे हैं जो टक्कर मारते हैं और प्रेम रूपी ताले को तोड़ डालते हैं। आप अपने अहंकार और क्रोध से एक बार तो किसी से काम करवा सकते हैं लेकिन अन्ततः वह आपसे टूट जाएगा।
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