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________________ भरकर उसी बात को मधुर शब्दों में कहने की कोशिश करें। आपकी बात और अधिक प्रभावपूर्ण हो जाएगी। अगर सामने वाला व्यक्ति बहुत ज्यादा गुस्से में है तो आप विनम्रतापूर्वक शांत रहें । क्रोध के वातावरण में जितना मौन रखा जाए उतना ही लाभदायक है। पर ध्यान रखें कि आपका मौन इस तरह का भी न हो कि सामने वाला अपने आपको उपेक्षित समझे और उसका गुस्सा दुगुना हो जाए। जो क्रोध चिंगारी के रूप में पैदा होता है, उसे कभी भी दावानल न बनने दें। सहन करें, कड़वे बोल औरों के द्वारा गलती करने पर उन्हें प्रेम से समझाने की कोशिश करें। अगर आप ऑफिस पहुँचे और पहुँचते ही किसी बात पर अपने कर्मचारियों पर झल्लाने लगते हैं तो कर्मचारी यही सोचेंगे कि 'लगता है 'बॉस' आज बीवी से लड़कर आए हैं।' अत: वहाँ न चली तो यहाँ चला रहे हैं। घर का गुस्सा ऑफिस में न ले जाएँ और ऑफिस का गुस्सा घर पर न उतारें। कई बार आपने किसी गुस्सैल व्यक्ति के लिए यह कहते हुए सुना होगा, 'पता नहीं यार, सुबह -सुबह किससे माथा लड़ गया कि उसने पूरा दिन ही खराब कर दिया।' ___दूसरों की छोटी-छोटी गलती को नजरअंदाज करें। भगवान महावीर जिनकी हम पूजा करते हैं उनके कान में कीलें ठोंकी गईं तब भी वे शांति से उन्हें सहन करते रहे। किन्तु हम उनके अनुयायी होकर भी किसी के दो कड़वे शब्दों को क्यों नहीं सहन कर सकते हैं ? कहते हैं, जब शिशुपाल का जन्म हुआ तो आकाशवाणी हुई थी कि शिशुपाल का वध कृष्ण के हाथों होगा। शिशुपाल की माँ भगवान कृष्ण के पास पहुँची और उनसे वचन माँगा कि आप मेरे पुत्र का वध नहीं करेंगे। कृष्ण ने महानता दिखाई और कहा, 'मैं तुम्हें ऐसा वचन तो नहीं दे सकता, पर तुम्हारे पुत्र की निन्यानयवे गलतियों को माफ करने का वचन देता हूँ।' कृष्ण ने ऐसा ही किया। कृष्ण अगर किसी की निन्यानवे गलतियों को माफ कर सकते हैं तो हम किसी की नौ गलतियों को माफ करने की उदारता क्यों नहीं दिखा सकते? 'कैसे बचें क्रोध से' इसके सूत्र तलाशने से पूर्व मैं एक बड़ी प्यारी सी घटना का जिक्र करना चाहूँगा। घटना कुरान शरीफ़ की है । मोहम्मद साहब के नाती का नाम खलीफा हुसैन था। उस समय का जमाना गुलामों का था। मनुष्य खरीदे-बेचे जाते थे। गुलामों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था। तिस पर खलीफा हुसैन तो मानो क्रोध के अवतार ही थे। अगर वे किसी गुलाम से खफा हो जाते तो सिवा मौत के वे अन्य कोई सजा ही न देते। एक दिन खलीफा हुसैन अपने महल में नमाज अदा कर रहे थे। तभी एक गुलाम अपने में गर्म पानी का भगोना लेकर उधर से निकला। अचानक उसे ठोकर लगी और बरतन हाथ से छूट गया और गरम पानी नीचे फैल गया।कुछ बूंदे नमाज पढ़ते हुए खलीफा हुसैन पर भी जा गिरी। वह चौंक गया और गुस्से से भर गया। चूंकि उस समय वह नमाज़ अदा कर रहा था अतः उठ नहीं सकता था। उधर गुलाम ने सोचा कि आज तो मौत का फरमान जारी होकर ही रहेगा। उसकी आँखों के सामने मौत नाचने लगी। तभी पास में रखी हुई पवित्र कुरान की पुस्तक उसने उठा ली। वह उसके पन्ने उलटने लगा और खुली पुस्तक हाथ में रख ली। वह सोचने लगा कि अब तो मरना ही है। मरने से पहले कुरान की कुछ आयतों का 61 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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