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________________ क्रोधी आदमी कीड़े, मकोड़े और बिच्छू तक को मार देता है, पर अपने ही भीतर पलने वाले क्रोध को क्यों नहीं मार पाता? मनुष्य अपने जीवन में मूलत: चार वृत्तियों में जीता है और वे हैं- काम, क्रोध, माया और लोभ। मेरे देखे इनमें से काम, माया और लोभ की वृत्तियाँ तो मनुष्य को आंशिक लाभ और सुख भी देती है लेकिन क्रोध एक ऐसी वृत्ति है जिसमें व्यक्ति खुद भी जलता है और दूसरों को भी जलाता है। हकीकत तो यह है कि क्रोधी व्यक्ति अपने भीतर और बाहर एक ऐसी आग लगाता है जिसमें वह औरों को जलाने की कोशिश करता है पर उसे बाद में पता चलता है कि इससे वह औरों को जला पाया या न जला पाया पर खुद तो पहले ही झुलस गया। क्रोध में जलना तो तूली की तरह है जिसे दूसरों को जलाने के लिए पहले स्वयं को जलना होता है। क्रोध एक : नुकसान अनेक मैं कई बार सोचा करता हूँ कि क्या धरती पर कोई ऐसा मनुष्य है जिसने अपनी जिन्दगी में कभी क्रोध न किया हो? ऐसे ब्रह्मचारी साधक तो मिल जाएंगे जिन्होंने कभी काम का सेवन नहीं किया हो पर 'क्रोध' तो 'काम' विजेताओं पर भी विजय प्राप्त कर लेता है। सच्चाई तो यह है कि जब आप क्रोध के नियंत्रण में होते हैं तो स्वयं का नियंत्रण खो देते हैं । सावधान ! एक पल का क्रोध आपके पूरे भविष्य को बिगाड़ सकता है। जिन संबंधों को मधर बनाने में हमें दस वर्ष तक एक दसरे को सेटिस्फाइड करना पडता है वहीं हमारा दस मिनट का गस्सा उन संबंधों पर पानी फेर सकता है। सफलता के बढ़ते हुए कदमों में केले के छिलके का काम करता है हमारा गुस्सा। हमारा क्रोध हमें सफलता से हाथ धोने के लिए मजबूर कर देता है। 24 घंटे भोजन करके हम जो शक्ति अपने शरीर में पाते हैं, कुछ मिनट का गुस्सा उस शक्ति को क्षीण कर देता है। जो बच्चे बचपन में ज्यादा गुस्सा करते हैं, बड़े होने पर उनका दिमाग कमजोर हो जाता है। क्रोध में व्यक्ति दो तरह का हिंसक हो जाता है । कभी वह औरों को नुकसान पहुंचाता है तो कभी स्वयं को। औरों को नुकसान पहुँचाने के लिए वह गाली-गलौच करता है, हाथापाई करता है अथवा किसी शस्त्र से प्रहार भी कर देता है। लेकिन कई बार व्यक्ति इसका उलटा भी कर लेता है। क्रोध में आकर वह अपना ही सिर दीवार से टकरा देता है। भोजन कर रहा है तो थाली को उठाकर फेंक देता है । बचपन में मैंने देखा है कि हमारे मौहल्ले में एक ऐसा लड़का रहता था जिसे गुस्सा बहुत आता था। एक दिन उसके घर में किसी ने उसे टोक दिया। उस लड़के को गुस्सा आ गया, संयोग से उस दिन उसे परीक्षा देने जाना था किंतु गुस्से में भरकर उसने निर्णय ले लिया कि मैं परीक्षा देने नहीं जाऊँगा। घर के सारे लोग उसे समझा कर हार गये लेकिन वह परीक्षा देने नहीं गया और इस तरह आवेश में आकर लिये गये निर्णय ने उसका पूरा वर्ष बेकार कर दिया। इस तरह के निर्णय लेने के कुछ समय बाद व्यक्ति को भले ही लगता हो कि उसका वह निर्णय गलत था लेकिन वह कुछ कर पाये, उससे पहले ही उसका क्रोध अपना गलत प्रभाव दिखा ही देता है, और ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपना अहित कर बैठता क्रोध के तीन भेद व्यक्ति तीन तरह का क्रोध करता है। अल्पकालीन क्रोध, अस्थाई क्रोध और स्थाई क्रोध । अल्पकालीन 54 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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