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________________ व्यक्तित्व को जुझारू बनाएं चिंता से बचने के लिए जीवन से जूझने का प्रयास करें। जो होगा, सो देखा जाएगा। क्यों व्यर्थ के तनाव और चिंता पालें, अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों से व्यक्ति जूझने का प्रयास करे। अपने प्रयास पर अटल रहें, अन्यथा छोटी-छोटी बातों को लेकर आप तनाव पालते जाएंगे और जीवन में कभी कोई निर्णय नहीं कर पाएंगे। चिंतन करें, पर चिंता से बचें। अच्छी और श्रेष्ठ किताबें अवश्य पढ़ें। याद रखें, एक अच्छी पुस्तक हमारी सहचर होती है और वक्त-बेवक्त में हमें सही मार्गदर्शन देती है। अगर आप अच्छी किताबें पढ़ते हैं तो आपकी चिंता चिन्तन में परिणित हो सकती है। दुःख की दवा चिंता नहीं है। अगर आप चिंता से बचना चाहते हैं तो मुस्कुराना सीखें। हर समय मुंह लटकाये न बैठे रहें। जब मिलें जोश, उमंग, उत्साह से मिलें । सूर्योदय से पहले जगें और थोड़ा सा टहल लें ताकि आप चिन्ता से दूर हो सकें।सुबह की सैर मानसिक तरोताजगी के लिए काफी उपयोगी है। थोड़ा सा व्यायाम करें और संभव हो तो पन्द्रह मिनट तक ध्यान अवश्य करें। ध्यान आपके चिंतन को प्रखर करेगा और आपको चिन्तामुक्त करने का प्रयास करेगा। अपने आज्ञाचक्र पर यदि आप प्रतिदिन पन्द्रह मिनिट ध्यान करते हैं तो आप अनुभव करेंगे कि आप दिन भर की सौ तरह की चिंताओं से मुक्त हो गये हैं। ध्यान के बाद आप एक कागज पर दिन भर के वे कार्य लिखें जो आपको करने हैं । व्यवस्थित रूप से काम लिखें और एक-एक काम पूर्ण करना शुरू कर दें। सांझ तक सारे काम पूरे हो जाएंगे और आप चिंता से मुक्त रहेंगे। नज़र-नज़र का फेर चिंता से बचने के लिए सकारात्मक विचारों में जीने की कोशिश करें और नकारात्मकता का त्याग करें। जब भी किसी के प्रति गलत विचार आये, अशुभ सोच बने अपनी दृष्टि को सकारात्मक बनाएं ।माना कि एक गिलास में आधा पानी भरा हुआ है सकारात्मक दृष्टिवाला कहेगा कि गिलास आधी भरी हुई है और नकारात्मक दृष्टि वाला कहेगा कि गिलास आधी खाली है। तुम्हारे देखने के नज़रिये का यह फर्क है। आपको अपना विकास करने का पूरा अधिकार है लेकिन दूसरे के अधिकार का हनन करके नहीं। अपनी लकीर बड़ी करने के लिए दूसरे की लकीर मिटाएं नहीं। उस लकीर के नीचे बड़ी लकीर खींच दें। दूसरे की लकीर खुद-ब-खुद छोटी हो जायेगी। अपने विकास के स्वतंत्र द्वार खोलें बजाय कि दूसरे के विकास को देखकर ईर्ष्यालु हों। मस्त रहो मस्ती में चिन्ता से मुक्त होने का अंतिम सूत्र है : हर हाल में मस्त रहो। श्री चन्द्रप्रभ जी कहा करते हैं कि हर समय व्यस्त रहो और हर हाल में मस्त रहो। जो व्यस्त और मस्त रहता है वह जिंदगी में कभी चिन्ताग्रस्त नहीं हो सकता। कितनी भी आपदा या विपत्ति आये, लेकिन हमारे हाथ से मस्ती छूट न जाय । एक घटना याद आ रही है। कहते हैं, संत नानइन गांव के बाहर किसी पेड़ के नीचे बैठे रहते थे। पहनने के लिये फटे पुराने कपड़े, बिछाने के लिए फटा आसन और खाना खाने के लिये टूटी-फूटी मिट्टी की थाली - यही उनकी सम्पत्ति थी। लेकिन वे इतने मस्त, इतने प्रसन्नचित्त, इतने आनंदित थे कि जब देखो वे मुस्कुराते ही रहते। परमात्मा में लीन होते तो अपने 50 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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