________________
हँसी, मेल-मिलाप, साहस, सेवा और प्रेम आदि से हमारे भीतर अच्छे आवेग पैदा होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं । भय, चिंता, घृणा, दंभ, निराशा, निंदा, ईर्ष्या, लड़ाई-झगड़े आदि से बुरे आवेग पैदा होते हैं जो हमारे स्वास्थ के लिए बड़े हानिकारक होते हैं। अच्छे आवेग जहाँ हमारे शरीर के लिए बहुत लाभदायक होते हैं वहीं बुरे आवेग हमें शारीरिक और मानसिक तौर पर पीड़ित करते रहते हैं ।
प्राय: हम सोचा करते हैं कि चिंताग्रस्त रहने वाले लोगों में कोई न कोई प्राकृतिक कमी रहती होगी, पर ऐसी बात नहीं है । चिंतित अथवा तनाव ग्रस्त रहने वाले लोगों में किसी तरह की कमजोरी नहीं होती बल्कि उसके मूल में वह अशुभ वातावरण होता है जिसमें वे रहते हैं। मैंने कई चिंताग्रस्त लोगों को देखा है जो तरहतरह की बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। मैंने कुछ ऐसे चिंतित लोगों को भी देखा है जिन्हें चिंता का दौरा आने पर उनका दिल तेजी से धड़कता है और हाथ पांव भी ठण्डे पड़ जाते हैं । ऐसे लागों को मानसिक, बैचेनी, सिर दुःखना और चक्कर आना आदि रोग लगने भी शुरू हो जाते हैं ।
सामान्यतया हम चार घंटा काम करके जितनी थकावट पाते हैं उससे चार गुना थकावट हमें चार घंटे की चिंता दे देती है । चिंताग्रस्त व्यक्ति थोड़ा-सा काम करने से ही स्वयं को थका हुआ महसूस करता है । चिंता और बुरे आवेग - ये दोनों एक दूजे के पर्याय हैं और इनसे शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ती है और शरीर कमजोर पड़ना शुरू हो जाता है । अधिक चिंता अधिक थकान देती है जबकि कम चिंता कम थकान देती है। हकीकत तो यह है कि चिंताग्रस्त व्यक्ति सदैव ही थका हुआ रहता है क्योंकि मनुष्य की थकान प्रायः उसके मस्तिष्क में ही उत्पन्न होती है । यदि आप रात भर सोये हैं और इसके बावजूद सुबह आपकी थकान नहीं उतरी है तो इसका मुख्य कारण चिंता और मानसिक तनाव ही है ।
कार्य को समझें कर्तव्य
मैंने देखा है कि कुछ लोग जब सुबह उठते हैं तो उसके एक-दो घंटे बाद ही वे स्वयं को थका हुआ महसूस करते हैं। मेरी नजर में इसका मुख्य कारण किसी प्रकार की चिंता है या ऊब है। दिन का आरम्भ होते ही जब व्यक्ति अपने कार्यों को व्यवस्थित क्रम नहीं दे पाता तो वह बार-बार दिनभर के कार्यों को याद करके बोझिल होता है और उस पर उन कार्यों की चिंता सवार हो जाती है अथवा एक ही कार्य को बार-बार करने से व्यक्ति ऊब जाया करता है। विशेषकर घरेलू काम-काज करने वाली महिलाएँ इस परिस्थिति से गुजरती हैं। वे घर के काम काज में इस वातावरण को समझ नहीं पाती अथवा कार्यों को व्यवस्थित सम्पादित नहीं कर पाती इसलिए वे ऊब जाया करती हैं। कई बार 'वर्क लोड ' ज्यादा होने पर वे यही सोचने लगती हैं, क्या सारे कार्यों का ठेका मैंने ही ले रखा है, ? यह सोच कर महिलाएँ कार्य को बेमन से करती हैं। परिणामस्वरूप वह कार्य भारभूत भी होता है और चिंता देने वाला भी । अच्छा होगा कि वे महिलाएँ घर के कार्य को अपना कर्त्तव्य समझते हुए बड़प्पन दिखाएँ और क्रमश: एक-एक कार्य को सम्पन्न करें। दिन में दो-तीन बार शरीर को आराम भी दें।
दीपावली या अन्य किसी त्यौहार के मौके पर घर की सफाई के नाम पर एक साथ सारे काम हाथ में न उठाएँ। वे महिलाएँ अपने घर में सदैव दीवाली मनाती हैं जो केवल दीवाली के मौके पर ही घर की साफ-सफाई
Jain Education International
43
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org