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________________ नहीं है कि बच्चा भी हमारा कहना माने । जैसे आप बच्चे की मर्जी पूरी करते हैं तो क्या यह जरूरी नहीं हैं कि बच्चा भी आपकी मर्जी का ख्याल रखें। परिवार के हर सदस्य की भावना का मूल्य होना चाहिए, पर परिवार की मर्यादाओं के मौल पर नहीं। आपका बच्चा अगर गलत जा रहा है तो आप समझाएं और उसे लाख समझाने के बावजूद वह सही रास्ते न आए तो मोह में बंधकर सहन करने की बजाए उसका बहिष्कार एवं त्याग करने की हिम्मत दिखाएं। परिवार के सदस्यों की भावना का मूल्य हैं पर याद रखें घर की भी अपनी मर्यादाएँ होती है। आप अपने घर में ऐसे कार्य करें कि जिन्हें करके आप स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर सकें और बच्चा उन कार्यों का अनुसरण करे तो वे कार्य घर को स्वर्ग का स्वरूप देने का कार्य कर सकें। दुनिया की श्रेष्ठतम रिकॉर्डिंग व्यवस्था बच्चे के दिमाग में स्थापित है। आप जो कह रहे हैं, कर रहे हैं वह सब भविष्य के लिए उसमें रिकॉर्ड होता जा रहा है और समय आने पर भविष्य में वही रिकॉर्डिंग आपके लिए दोहराई जाएगी। बच्चा व्यवहार को दोहराएगा। जो आप आज कर रहे हैं, कल वह वही करने वाला है। ईर्ष्या का नहीं, प्रेरणा का पाठ पढाएँ तीसरी बात यह कहना चाहंगा- बच्चों से अधिक अपेक्षाएं न पालें। आप बार-बार उनसे कहते हैं कि देख यह तेरी क्लास के बच्चे की फोटो अखबार में छपी है। वह खेलने में कितना तेज है. गोल्ड मेडल मिला है। कभी आप कहते हैं कि पडौसी का बच्चा अपनी क्लास में फर्स्ट आया है। तम तो पढते ही नहीं, बद्ध हो - ऐसा ही काफी कुछ कहते रहते हैं। बच्चों की किसी से तुलना न करें और न ऐसी अपेक्षा रखें कि मेरा बच्चा ऐसा हो, मेरे बच्चा अन्य किसी के जैसा हो। उसे उसका नैसर्गिक विकास प्रदान कीजिए । वह आपका पप्पू है, पीपाड़ी नहीं कि जब चाहें तब उसका बाजा बजाने लग जाएँ। कुछ दिन पहले एक महानुभाव अपने दो बच्चों को लेकर हमारे पास आए और कहने लगे कि यह छोटा बच्चा पढ़ने में बहुत होशियार है, बुद्धिमान है, लेकिन यह बड़ा वाला थोड़ा कमजोर है। मैंने पूछा - मतलब ? वार्षिक अंक कितने आते हैं ? कहने लगे - ठीक है, अभी 82 प्रतिशत आए हैं। मैंने कहा - तुम्हारा यह बड़ा बच्चा चौथी कक्षा में इंग्लिश मीडियम में 82 प्रतिशत अंक लाया है और तम कहते हो कि यह कमजोर है। ईमानदारी से बताओ कि जब तुम आठवीं में पढ़ते थे, तब क्या 42 प्रतिशत अंक भी ला पाए थे? आप बच्चों को अखबार में छपी फोटो दिखाते हैं और अपेक्षा करते हैं कि वह भी कर दिखाए, लेकिन अगर आपका बच्चा आपसे सफल मित्र की छपी तस्वीर दिखाकर कहे कि देखो, आप भी कुछ ऐसा करें कि अखबार में आपके दोस्त जैसी तस्वीर छप सके, तब आपका चेहरा कैसा होगा। एक पिता ने अपने पुत्र से कहा मैं तुम्हारी उम्र में था तो बारहवीं पास कर गया था, तू अभी तक नौंवी में ही है । बच्चा तपाक से बोला- रहने दीजिए पापा, राजीव गांधी आपकी उम्र में देश के प्रधानमंत्री बन गए थे, पर आप? अगर आप बच्चे से अधिक योग्यताएं पाने की उम्मीद करेंगे तो बच्चा भी आपमें उच्च योग्यताओं को पाने की अपेक्षा रखेगा। इसलिए कोशिश करें कि सहज रूप में बच्चे के जीवन का विकास हो । बच्चे को प्रेरणा का पाठ पढ़ाइये, उसे आंशिक रूप से स्पर्धा का पाठ भी पढ़ाईये, लेकिन ऐसा न हो कि पढ़ाते-पढ़ाते बच्चे को ईर्ष्या का पाठ पढ़ाना शुरू कर दें। आप प्रेरणा का पाठ 174 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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