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________________ भीतर चिंता का भूत सवार है, तनाव, अवसाद है, घुटन है, विफलता के कारण कुछ कर नहीं पा रहे हैं, तो इसका मूल कारण है व्यर्थ की कल्पनाएँ और आकांक्षाओं का मकड़जाल । एक इच्छा को पूरी कर देने से क्या इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं ? जितनी इच्छाएँ पूरी करते हैं, उतनी ही बढ़ती जाती हैं। आदमी का अंत होता है, लेकिन इच्छाओं का अंत नहीं होता । हमारी इच्छाएँ आकाश के समान अनंत है । जैसे आकाश मकान के पार समाप्त होता दिखाई देता है, लेकिन वहाँ जाकर देखने से वह फिर उतना ही दूर हो जाता है जितना पहले था। वैसे ही जीवन में इच्छाएँ चाहे जितनी पूरी करते जाएँ, फिर भी वह पकड़ से बाहर रहती हैं। ये भी पा लूं, वह भी बटोर लूं और बटोरते - बटोरते घर में कितना संग्रह करते जा रहे हैं । कभी घर में देखा है आपने कितना कूड़ा-करकट इकट्ठा कर रखा है। खाली डिब्बे काम के न थे पर रख लिये कि भविष्य में कभी काम आएँगे । ये चीज काम की नहीं है पर अभी रख लूँ भविष्य में कभी काम आएगी। हम घरों में पचास प्रतिशत सामान ऐसा रखते हैं जिनका उपयोग छह महीनों में कभी नहीं करते। बेवज़ह का संग्रह ! जो लोग बेवज़ह संग्रह करते हैं वे जीवनभर तो संग्रह करते ही हैं, मृत्यु के कगार पर पहुँचकर उनके प्राण इसी संग्रह में अटक जाते हैं। मुझे याद है - एक संपन्न व्यक्ति की पत्नी बीमार हो गई। इतनी बीमार कि मरणासन्न हो गई । उसकी दशा देखकर पति भी व्याकुल रहता कि कितनी तकलीफ उठा रही है फिर भी प्राण नहीं निकलते थे । एक दिन पति ने पूछ ही लिया कि उसे क्या तकलीफ है। पत्नी ने कहा-मेरे पास जो इतना जेवर है, सैकड़ों साड़ियाँ हैं उनका क्या होगा । पति ने मज़ाक में कह दिया मैं पहन लूंगा। इतना सुनते ही पत्नी का देहांत हो गया और वर्षों गुजर गये पति आज भी महिलाओं के वस्त्र पहनता है और वैसा ही श्रृंगार करता है । व्यक्ति जीवन में केवल आवश्यकताओं की पूर्ति करे । आपकी आवश्यकता बीस साड़ियों की है लेकिन आकांक्षा पचास साड़ियों की है। पुरुष लोग ही एक छोटा-सा नियम ले लें कि वे एक ही रंग के कपड़े पहनेंगे जैसे कि केवल सफेद कपड़े पहनेंगे। अब हमें देखिए हमारा नियम है श्वेत कपड़े पहनने का अब कितना संग्रह करेंगे। जब आपका भी नियम होगा तो कितने वस्त्र इकट्ठे करेंगे एक रंग के ? लोगों में रंग का भी राग है। कपड़े सब कपड़े हैं पर रंगों का फ़र्क है। महिलाएँ बेहिसाब साड़ियाँ इकट्ठी करती हैं पर पहन कितनी पाती हैं। एक बार में एक ही साड़ी पहनोगे ना, दो तो नहीं पहन पाओगे। लोगों का रंगों का भी राग है। कपड़े सब कपड़े हैं पर रंगों का फर्क है। रंगों का भी अपना राज है । यह आपके स्वभाव के प्रतीक होते हैं। किसी को लाल रंग पसंद है तो किसी को गुलाबी, तो किसी को पीला रंग पसंद होता है । जिसका स्वभाव तेज होता है उसे लाल रंग पसंद होता है । जिसका स्वभाव थोड़ा मीठा होता है उसे गुलाबी रंग अच्छा लगता है। जिसका स्वभाव खट्टी-मीठी प्रकृति का होता है उसे पीला रंग अच्छा लगता है। जो शांत स्वभाव का होता है उसे सफेद रंग अच्छा लगता है। जिसकी जैसी चित्त की प्रकृति होती है वैसे-वैसे रंग के कपड़े पहनने की कोशिश करता है । व्यक्ति आकांक्षाओं के मकड़जाल में न उलझे, अपनी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की सीमा बनाए । रहने के लिए मकान है, खाने के लिए रोटी है, Jain Education International 163 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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