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________________ उसमें दुर्गंध आ रही थी। उसने अपनी बीवी-बच्चों को हिदायत दी कि ब्रेड न खायें। साथ ही कहा कि बाहर जो भिखारी बैठा है उसे ले जाकर दे दो। क्या आपके भीतर जरा भी इन्सानियत है ? सुबह की दाल, गर्मी के कारण खट्टी हो गई। आप कहते हैं कि फेंकना मत, कोई भिखारी जा रहा हो तो उसे दे देना। सावधान ! कहीं पुण्य के नाम पर हम पाप तो नहीं कमा रहे हैं। जो चीज तुम खुद नहीं खा सकते, अपने बच्चे को नहीं खिला सकते वह किसी निर्धन के बच्चे को खिलाकर उसे बीमार करने की कोशिश कर रहे हो। अगर तुम देना ही चाहते हो तो वही दो जिसका तुम खुद उपयोग कर सको। बची हुई रोटी देने तक की सोच न रखें। जब आटा भिगोओ तब तुम उसमें दो मुट्ठी आटा ज्यादा भिगोना और उसकी रोटी किसी ग़रीब भिखारी को दे देना, तुम्हारे तो आटे के डिब्बे भरे हैं, अत: दो मुट्ठी आटा निकालने पर फ़र्क नहीं पड़ेगा, पर उस ग़रीब के तो दो रोटी में काफ़ी फ़र्क पड़ जाएगा। अमेरिका में एक बालक आइसक्रीम की दुकान पर गया और आइसक्रीम की कीमत पूछी तो वेटर ने बताया पिचहतर सेंट । बालक ने अपनी जेब में हाथ डाला तो पाया उसके पास पिचहतर सेंट ही है। उसने कहा 'क्या और छोटा कप या कॉन नहीं है ?' वेटर ने कहा हाँ है, पैंसठ सेंट का'। बालक ने पैंसठ सेंट वाली आइसक्रीम के कप का ऑर्डर दिया। बच्चे ने आइसक्रीम खाई और चला गया। वेटर जब खाली कप और प्लेट उठाने आया तो देखा कि प्लेट में दस सेंट रखे हुए हैं। आप अपने कल्याण और सुख की सोचने के साथ दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। हमारे सभी शास्त्र, वेद, उपनिषद और आगम यही तो पाठ दे रहे हैं कि हम केवल अपने सुख की कामना तक सीमित न रहें, बल्कि अपने जीवन में सर्वे भवन्तु सुखिनः' की कामना लेकर चलें। हम अपने मानवीय दृष्टिकोण को उदात्त करें। यह अच्छा है कि आप समाज के मंच पर खड़े होकर पाँच लाख का दान करते हैं पर हमारे नौकर की पत्नी अगर बीमार हो जाए और वो हमसे बीस हजार रुपये पत्नी के इलाज के लिए उधार मांग ले तो हमें देने में क्यों हिचकिचाहट होती है ! न लौटेंगे शब्दों के तीर व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए तीसरी बात है कि शब्दों का चयन सावधानी से करें। हर बात सोचने की तो होती है पर हर बात कहने की नहीं होती। बुद्धिमान सोचकर बोलता है और बुद्ध बोलकर सोचता है। इससे अधिक फ़र्क नहीं है बुद्धिमान और बुद्ध में । इसलिए बोलने में अपने शब्दों का चयन सावधानीपूर्वक करें। सतर्कतापूर्वक करें । जीभ तो आपकी अपनी है और इस पर नियंत्रण भी आपको ही रखना पड़ेगा। हमारी एक जीभ की रक्षा बत्तीस पहरेदार करते हैं लेकिन जीभ का अगर ग़लत उपयोग कर लिया तो बत्तीस पहरेदार (दाँत) भी संकट में पड़ जाएँगे। यह अकेली बत्तीसी को तुड़वा सकती है। इसलिए ग़लत टिप्पणी न करें और न ही व्यंग्य में अपनी बात को पेश करें। किसी को आप खाने में चार मिठाई भले ही न खिला सकें लेकिन आपके चार मीठे बोल खाने को जायकेदार बना देंगे। वाणी का बेहतर उपयोग करना सीखें, क्योंकि मुँह से निकले हुए शब्द कभी लौटाये नहीं जा सकते हैं। मुझे याद है कि एक किसान ने अपने पड़ौसी की खूब निन्दा की, अनर्गल बातें उसके बारे में बोली। बोलने के बाद उसे लगा कि उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया, गलत कर दिया। वह पादरी के 143 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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