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________________ जवानी में तो व्यक्ति दूसरों के लिए जीता है, लेकिन बुढ़ापे में व्यक्ति अपने जीवन के कल्याण और मुक्ति की व्यवस्था के लिए अपने क़दम बढ़ाता है । इतिहास ग़वाह है कि प्राचीन युग के राजा-महाराजा बुढ़ापे में वानप्रस्थ और संन्यास के मार्ग को अंगीकार कर लेते थे, ताकि मृत्यु के आने से पूर्व अपनी मुक्ति का प्रबंध कर सकें । जो बुढ़ापे को ठीक से जीने का प्रबंध नहीं कर पाते हैं, उन्हें बुढ़ापा मृत्यु देता है और जो बुढ़ापे को स्वीकार कर मुक्ति के साधनों के लिए प्रयास करते हैं उनके लिए बुढ़ापा मुक्ति का साधन बन जाता है। बुढ़ापे से बचने के लिए और जवानी को बचाने के लिए लोग दवाएँ ले रहे हैं पर बुढ़ापा सब पर आना तय है, इसमें कोई रियायत नहीं है। केवल तुम्हारे बाल ही सफेद नहीं हो रहे हैं अतीत में भी मनुष्य के सिर के बाल सफेद होते रहे हैं। यह न समझो कि केवल तुम्हारे ही कंधे कमजोर हो रहे हैं, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ रही हैं, दृष्टि कमज़ोर हो रही है, कानों से ऊंचा सुनाई देने लगा है, दाँत गिर रहे हैं - यह हर किसी के साथ होता है । इसके लिए हताश होने की जरूरत नहीं है। बुढ़ापे में भी बसंत है बुढ़ापा जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह समस्या नहीं, नैसर्गिक व्यवस्था है। यह सार नहीं जीवन का हिस्सा है। यहाँ आकर व्यक्ति स्वयं के लिए चिंतन करता है, अन्तर्मन की शांति को जीने का प्रयास करता है। जीवन भर जो परिश्रम किया है बुढ़ापे में उससे शांति, विश्राम और आनंद से जीने की कामना रखता है। हम देखते हैं कि प्रायः लोग बुढ़ापे से बचना चाहते हैं। व्यक्ति लम्बी उम्र तो चाहता है, पर बुढ़ापा नहीं। लेकिन बुढ़ापा आना तो तय है और जब चेहरे पर कोई झुरीं दिखाई देती है, तो वह सोचता है - चलो कुछ योगासन कर लूं ताकि बुढ़ापे से बच सकूँ। जैसे ही बुढ़ापा झलकना शुरू होता है, व्यक्ति कुछ पौष्टिक पदार्थ खाने की सोचने लगता है ताकि बुढ़ापे को थोड़ा टाला जा सके। सफेद होते हुए बालों को रंगकर काले करने की कोशिश करता है कि बुढ़ापे को झलकने से रोक सके। बाल काले करके बुढ़ापे को ढका जा सकता है, पर उससे बचा नहीं जा सकता है हम बुढ़ापे को रोकने की कोशिश करते हैं। मेरी नज़र में जीवन का बसंत जवानी नहीं, बुढ़ापा है। जिसने जीवन को सही ढंग से जीने की कला जान ली है उसके लिए बुढ़ापा फूल बनकर आता है। उसके लिए बुढ़ापा जीवन की शांति बन जाता है और अहोभाव, आनन्द और पुण्यभाव का रूप लेकर आता है। बचपन ज्ञानार्जन के लिए है, जवानी धनार्जन और बुढ़ापा पुण्यार्जन के लिए है। सुख भोगने के लिए जवानी है तो शांति और आनंद को जीने के लिए बढापा है। भारतीय संस्कति में जीवन जीने के चार चरण हैं। ब्रह्मचर्य, गहस्थ वानप्रस्थ और संन्यास। पहला चरण शिक्षा-संस्कार के लिए, दूसरा चरण संसार-सुख के लिए, तीसरा पुण्यधर्म के लिए और चौथा शांति-मुक्ति के लिए है। धन्य है वह घर-द्वार जिस घर में वृद्ध होते हैं, जहाँ वृद्ध माँ-बाप का आशीर्वाद होता है, जहाँ बड़े-बुजुर्गों का साया होता है वह घर स्वर्ग होता है, जिस घर में वृद्धों का साया उठ जाता है वहाँ की शांति भी धीरे-धीरे कम होती जाती है। भाग्यशाली होते हैं वे जिन्हें बुजुर्गों का सान्निध्य, सामीप्य और प्रेम मिला करता है। सौ किताबों का ज्ञान एक तरफ और एक वृद्ध का अनुभव एक तरफ। जहाँ सौ पुस्तकों का ज्ञान असफल हो जाता है वहाँ एक वृद्ध की दी गई सही सलाह, उसका अनुभव कारगर हो जाता है। वे घर धन्य होते हैं जहाँ सुबह उठकर घर के सभी लोग 126 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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