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________________ बाबा, जरा नीचे आओ।' साधु बाबा फिर अपनी गुफा से बाहर निकले और लकड़ी के सहारे जैसे-तैसे नीचे पहुँचे। उन्होंने आकर पूछा - 'बोलो भैया, फिर कैसे याद किया?' फकीर ने कहा- 'कुछ नहीं बाबा, बस फिर आपके दर्शन की इच्छा हो गई।' बूढा साधु दो मिनट बात करने के बाद ऊपर चला गया और जैसे ही गुफा में बैठा कि फिर नीचे से आवाज आई - 'ओ साध बाबा. ओ साध बाबा. जरा नीचे आओ।' बढा साध जिस | जरा नीचे आओ।' बूढा साधु जिसकी कमर झुका हुइ थी, चेहरे पर झरियाँ छा चकी थीं. घटनों में दर्द भी रहा होगा. तब भी लकडी का सहारा लेकर एक बार फिर धीरे-धीरे नीचे आया। नीचे आकर पूछा - 'बोलो भैया, फिर कैसे याद किया?' फकीर ने कहा - 'कुछ भी नहीं, फिर आपके दर्शन की इच्छा हो गई थी।' बूढ़ा साधु दुआएं देकर वापस ऊपर चला गया। फकीर अपने घर लौट आया। पीछे-पीछे युवक भी फकीर के साथ आ गया। मर्यादा ही धर्म दोपहर का समय था। चिलचिलाती धूप पड़ रही थी। घर पहुँचकर फकीर ने अपनी पत्नी को आवाज दी, 'अरे सुनो, जरा लालटेन जलाकर लाओ, मुझे कुछ कविताएँ लिखनी हैं।' पत्नी भीतर गई, लालटेन जलाकर लाई और बाहर चौकी पर रख दी। फकीर ने कविताएँ लिखनी शुरू कर दीं। शाम होने आ गई। युवक से न रहा गया। वह पूछने लगा - 'फकीर साहब, मेरे प्रश्न का क्या हुआ?' फकीर ने कहा - 'मैंने तो जवाब दे दिया न् !' युवक ने कहा - 'मैं कुछ समझा नहीं, आपने तो कुछ भी जवाब नहीं दिया।' फकीर ने कहा - 'मैंने तुम्हें जवाब दे दिया है । तुम्हारा प्रश्न था कि तुम साधु बनो या शादी करो और तुम्हें इसका जवाब मिल गया है।' युवक ने कहा - 'मैं आपकी बात नहीं समझ पाया, कृपया स्पष्ट करें।' फकीर ने कहा - 'युवक, तम साध बनना चाहते हो तो जरूर बनो, लेकिन उस साध की तरह जिसे मैंने तीन बार नीचे बुलाया, तब भी उसके चेहरे पर किसी प्रकार की शिकन या क्रोध की तरंग नहीं थी। उस वृद्ध साधु के मन में कोई विक्षोभ नहीं था। बार-बार नीचे आकर, ऊपर जाकर भी उसके अन्तर्मन में शांति और मेरे प्रति कितना प्रेम था! हाँ, अगर तुम शादी करना चाहते हो तो ऐसी पत्नी लेकर आना जिसे दोपहर में दो बजे कहो कि लालटेन जलाकर लाओ तो वह यह न पूछे कि सूरज की रोशनी में लालटेन का क्या करोगे? साधु बनना हो तो उस साधु की तरह बनो जहाँ मन में प्रश्न न उठे कि बार-बार नीचे आने-जाने की तकलीफ क्यों दी जा रही है! यदि शादी करो तो पत्नी के मन में दिन में भी लालटेन मांगने के बाद प्रश्न न उठे कि लालटेन क्यों मांगी जा रही जीवन जीने की स्पष्टत: दो व्यवस्थाएँ हैं और दोनों ही बेहतरीन हैं बशर्ते उन्हें बेहतरीन तरीके से जिया जाए, मर्यादित रूप में जिया जाए। जीवन जीने का पहला मार्ग गृहस्थ और दूसरा संन्यास है। साधुत्व और संसार ये दोनों जीवन जीने के दो मार्ग हैं। एक ओर संसार की और दूसरी ओर संन्यास की धारा है। मैं दोनों की तुलना नहीं करूँगा क्योंकि दोनों ही अपने आप में अच्छी हैं। हम एक को हीन और दूसरे को श्रेष्ठ नहीं कह सकते । संसार में भी व्यक्ति नियम, मर्यादा और विवेक के साथ जीता है तो संसार भी श्रेष्ठ और संन्यास को अगर 104 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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