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_पहचानें, भीतर के बन्धन
भगवान बुद्ध के समय की घटना है। मगध के बाहर अचिरवती नदी में कुछ मछुआरे मछलियाँ पकड़ रहे थे। वे लोग वर्षों से यह काम कर रहे थे। उस दिन भी इसीलिए नदी पर पहुँचे थे। एकाएक एक मछुआरा चिल्लाया कि उसके हाथ सोने की मछली लगी है। मछुआरों ने देखा कि वह मछली सूर्य की किरणें पड़ने से चमक रही थी। सोने की उस मछली की परीक्षा करने जब सभी मछुआरे मछली के निकट पहुंचे, तो उस मछली से भयंकर बदब आ रही थी।
मछली पकड़ने वाले मछुआरे को सलाह दी गई कि इसे पुनः नदी में डाल दिया जाए अन्यथा यह पूरे नगर को दुर्गन्धित कर देगी। उस मछुआरे ने कहा, 'यह अभूतपूर्व मछली है। पहले मैं इसे राजा को दिखाऊँगा, उसके बाद नदी में डाल दूंगा।' वह उस मछली को एक डिब्बे में डालकर तथा कपड़े से उसका मुँह बाँधकर राजभवन पहुँचा। उसने वह डिब्बा राजभवन के बाहर ही रख दिया और भीतर जाकर राजा को सारी बात बताई।
राजा हैरान ! सोने की मछली! कभी सुना न देखा। लेकिन जब मछुआरे ने कहा कि वह उस मछली को अपने साथ लाया है और राजभवन के बाहर रखा है, तो राजा राजभवन से बाहर आया। मछुआरे ने जैसे ही डिब्बे पर बँधा कपड़ा खोला; पूरा वातावरण दुर्गन्धमय हो गया। राजा सहित सभी ने अपनी नाक पर कपड़ा रख लिया। उस मछली से आने वाली दुर्गन्ध के कारणों का पता नहीं चल पा रहा था।
राजा के आदेश पर वह मछली भगवान बुद्ध की सभा में ले जाई गई। राजा ने बुद्ध से पूछा, 'प्रभु ! इस बदबू का क्या राज़ है ?' बुद्ध ने कहा, 'यह मछली इन्सान के व्यक्तित्व की परिचायक है। इसका अतीत यह है कि यह
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