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________________ क्योंकि तुम्हें विश्वास है कि ऐसा करके तुम मुसलमानों के अहंकार को गिरा रहे हो, मंदिर इसलिए गिराना चाहते हो ताकि इस माध्यम से हिन्दुओं के अहंकार को गिरा सको। भारत के लोग अपने आपको आर्य कहते हैं और इसके अतिरिक्त सारी दुनिया को अनार्य । यह एक तरह का पवित्र अहंकार नहीं तो और क्या है ? जिस देश को तुम आर्य देश कहते हो, क्या वहाँ अनार्यों की कोई कमी रहीथी? क्या यहाँ रावण और कंस पैदा नहीं हुए? क्या यहाँ सीता का अपहरण और द्रौपदी का चीरहरण नहीं हुआ? फिर किस आधार पर हम अपने मुल्क को 'आर्य' और दुनिया को 'अनार्य' घोषित कर रहे हैं? अतीत को छोड़ो और वर्तमान को ही ले लो। आज तुम्हारे आर्य देश में जितनी अनार्यता पनपी है, उतनी तो कभी अनार्य देश में भी न रही होगी। यहाँ जितने अपहरण, हत्याएँ, बलात्कार, बेईमानी, रिश्वतखोरी चल रहे हैं, उतने तो उन अनार्य देशों में भी नहीं है। जापान का मंत्री तो एक क्षण में इस बात को लेकर इस्तीफा दे देगा कि किसी ने उस पर रिश्वतखोरी का आरोप लगा दिया है। तुम्हारे आर्य देश में क्या ऐसा कभी हुआ? नीचे से ऊपर तक सब अपनी जेब गरम करने में लगे हैं। हमारे मुल्क से हमने अहिंसा, ईमानदारी और नैतिकता का निर्यात कर दिया है। विदेशों में तो भारतीय नागरिक की ऐसी छवि बन गयी है कि अगर वह वहाँ किसी दुकान में प्रवेश करे तो दुकानदार सावधान हो जाता है कि 'यह इंडियन है, कहीं कुछ साफ न कर दे।' क्या अब भी हम आर्यता की मुहर साथ लगाए चलेंगे? इस अहिंसावादी देश की आधी संख्या शराबी हो गयी है, अंडे घर-घर में उबलने लग गये हैं, और जिन्हें तुम आर्य कह रहे हो, वे अनार्यों का जीवन (पाश्चात्य जीवन) जीने को लालायित हैं, फिर भी इसे आर्य देश कहकर इसकी मजाक क्यों उड़ाते हो? स्वयं को आर्य और औरों को अनार्य कहने की प्रवृत्ति जो हमारे भीतर में प्रवेश कर गयी है, उसके गहरे में कोई अहंकार की भावना ही छिपी है। मैं बड़ा हूँ, सीधा-सपाट कहना मनुष्य के लिए कठिन है, इसलिए वह अहंकार को दूसरा जामा पहनाता है। मेरा धर्म बड़ा, मेरा गुरु बड़ा, मेरा देश बड़ा कहकर प्रत्यक्ष में भले ही वह इन्हें बड़ा कह रहा हो पर परोक्ष में वह अपनी ही बड़ाई कर रहा है। इस जन्म में तुम जैन हो इसलिए कल्पसूत्र की महिमा गा रहे हो। पिछले जन्म में अगर मुसलमान थे तो कुरान की महिमा गायी थी। उससे पहले बाइबिल, गीता या पिटक की महिमा गायी होगी। महिमा तुम न सत्शास्त्र की गा रहे हो, न सद्धर्म की । महिमा उसकी गा रहे हो जो तुमसे जुड़ा है। पिछले जन्म में तुमने कुरान से वेद को अच्छा माना था, इस जन्म में हो सकता है तुम वेद से कुरान को अच्छा साबित करने में लगे हो। मेरे प्रभु! न कोई किसी में श्रेष्ठ है, न हीन है। श्रेष्ठता और हीनता की भावना सिर्फ तुम्हारे भीतर है। ये सब तो अनूठे हैं। इन्हें तोलने से क्या होगा? नाहक हम एक-दूसरे से लड़ेंगे। यह तो ऐसे ही हुआ जैसे प्रिंटिंग प्रेस के बाहर लिखा रहता है- 'सबसे सुन्दर छपाई का एकमात्र स्थान।' और आश्चर्य यह है कि ऐसा ही प्रत्येक प्रेस के बाहर लिखा मिलेगा। ये सब प्रयोग अनुपम हैं । किसकी किससे तुलना करोगे? गुलाब की अपनी महत्ता है और चम्पे की अपनी। अब भला इन दोनों में तुलना करने से क्या लाभ? तुम किसे हीन कहोगे और किसे श्रेष्ठ? तुम जिसे कुशास्त्र कह रहे हो, उसकी रचना भी किसी महापुरुष Jain Education International For Perso52 Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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