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महावीर की साधना का पहला और संभवत: अंतिम सूत्र यही है कि व्यक्ति साक्षी भाव में जिये, दृष्टा भाव में रहे, प्रेक्षा भाव में जिये। ऐसा हुआ तो तुम मोक्ष की डगर पर बढ़ सकोगे। मन की गति राग और द्वेष में रहती है। कई बार ऐसा होता है कि मन की इच्छाएँ पूरी नहीं हो पातीं। ऐसे में वह रात्रि में स्वप्नों में विचरण कर उन इच्छाओं को पूरा करता है।
मैंने सुना है, एक व्यक्ति के उपवास था। वह घर जा रहा था, तो रास्ते में उसे एक होटल में पकवान रखे दिखाई दिए। मन में खाने की इच्छा उत्पन्न हुई, मगर तभी मन में दूसरी इच्छा हुई कि नहीं, आज उपवास है।
न की पहली इच्छा को दबा दिया। घर गया और रात्रि में सो गया। उसका शरीर तो नींद के आगोश में चला गया, मगर मन जाग उठा। वह स्वप्न में उठा, रसोई में गया। वहाँ उसने फ्रीज में रखे हुए पकवान खाए और वापस बिस्तर पर आकर सो गया। सुबह उठा तो पेट खाली का खाली। ___ इसलिए कहता हूँ, मन की तरंगों को दबाने का प्रयास मत करो। मन को समझने की कोशिश करो। धीरेधीरे व्यक्ति इन तरंगों से मुक्त होता चला जाएगा। मन को एकाग्र करने के लिए एक छोटा-सा उपाय करके देखें। तीस पृष्ठों की एक कॉपी लेवें। सुबह या शाम, जब भी समय मिले, एक कोने में बैठ जाएँ। फिर मन को खुला छोड़ दीजिये, जहाँ भी जाए, उसे जाने दीजिये। १५-२० मिनट तक ऐसे ही बैठे रहें। बाद में डायरी का पहला पन्ना खोलें। इन पंद्रह मिनटों में आपके मन में जो-जो विचार आए, उन्हें लिख डालिये। दूसरे दिन, तीसरे दिन, इस तरह एक महीने तक यह प्रक्रिया जारी रखें। माह समाप्त होने पर डायरी को खोलकर पढ़ना शुरू करें।
यह डायरी एक तरह से आपकी आत्मकथा बन जाएगी। आप इसे गौर से पढ़ेंगे तो पाएँगे कि मन बँधीबँधाई कुछ चीजों के बारे में ही बहुत सोचता है। आप इन चीजों को छाँट कर अलग कर लीजिये। इसके बाद शुरू होती है असली कसरत। आप एक-एक कर इन चीजों को त्यागते चले जाइये। अब तक तो आपने कल्पसत्र और गीता पढी है किन्तु यह डायरी तो आपको अपना कल्पसूत्र देगी। यह वह ग्रन्थ है जो आपकी बुराइयों को शीशे की तरह आपके सामने लाता है। इसका स्वागत कीजिये। धीरे-धीरे इन बुराइयों को छोड़ने का प्रयत्न कीजिये । जब असत् से हमारे सम्बन्ध समाप्त होंगे तो मन की चंचलता भी समाप्त होती चली जाएगी। उसे समाप्त होना ही होगा।
अपने मन को वत्तियों को शांत करने के लिए वर्तमान में जीने का प्रयास करें। मन का ताल्लक मख्यत: अतीत और भविष्य से होता है। मन कभी अतीत की स्मतियों में जीता है. कभी भविष्य की कल्पनाओं के साथ उड़ान भरता है। जो हो चुका है, मन उसी को खोजता रहता है, वही खोजता है, तलाश करता है । उन्हीं स्मृतियों की प्रतिध्वनि के रूप में भविष्य बनता है। मन उनमें उड़ानें भरता है। मन की उधेड़बुन जारी रहती है। ध्यान जो कल अच्छा हुआ, मधुर हुआ, वह कल भी हो और जो कल बुरा, कड़वा हुआ वह कल न हो। ___ मन सुनहरे अतीत को ही भविष्य में दोहराना चाहता है। वह चाहता है कि उसका अतीत ही सुन्दरतम भविष्य बन कर सामने आये। भविष्य वास्तव में अतीत का ही छायांकन है। आश्चर्य की बात तो देखिये कि मन वर्तमान के बिल्कुल उल्टा चलता है। वह उस अतीत में जीता है, जो अब नहीं है, जिसका अस्तित्व नहीं रहा, मात्र स्मृति रही है या फिर उस भविष्य में जीता है जो अभी अस्तित्व में है ही नहीं, मात्र कल्पना है। मन वर्तमान
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