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कितने भरे हैं, अन्दर कुछ न समाता,
अद्भुत कुछ घटने वाला, घटने न पाता। क्या पता है कि भीतर के गोदाम में हमनें क्या-क्या भर रखा है। इसे गोदाम भी क्या कहें ? कचरा पेटी हो गया हमारा मस्तिष्क। पता है, इस मस्तिष्क में कितना कचरा भरा है निरर्थक विचारों का। ऐसे-ऐसे विचार जिनका हमारे अपने जीवन से सरोकार भी नहीं है। ऊल-जुलूल विचार! क्या कचरा-पेटी भर है हमारा मस्तिष्क और अब तक हम उसे इतना ज्यादा भर चके हैं कि कुछ अदभूत हमारे भीतर घटित हो सके, हमने उसकी सम्भावना भी नहीं छोड़ी है। कहीं कोई रिक्त स्थान भी नहीं। उस परम प्रकाश के लिए हमने अपनी सारी खिड़कियाँ ही बंद कर रखी हैं। और पता नहीं, इस कचरा-पेटी में हमारी ज्योति कहाँ जाकर दब गयी है? किसी को इसकी सुध भी नहीं है। बहुत हो चुका है, क्या अब भी अपने साथ ज्यादती करते रहोगे? ___ यह मत सोचो कि कहीं ऊपर से मेघ बरसेंगे और तुम्हें तृप्त करेंगे। नहीं, बाहर का जल तुम्हारे काम नहीं आयेगा। कूप कभी ऊपर के पानी का मोहताज नहीं बनता, वह तो अन्तर् के झरनों से ही स्वयं को लबालब कर लेता है। हाँ, हैं तुम्हारे भीतर आनन्द के अनन्त स्रोत । तुम स्वयं को अपने भीतर के स्रोतों से ही लबालब कर सकते हो।
शुद्धत्व में प्रवेश करने के लिए शुभाशुभ दोनों से मुक्त होना पड़ेगा। थैले में चाहे शक्कर भरी हो या मिट्टी, भारीपन तो दोनों ही देंगे। बन्धन चाहे लौह-श्रृंखला का हो या स्वर्ण-श्रृंखला का बन्धन आखिर बन्धन ही है। किसी चोर को तुम लोहे की सांकल से बांध सकते हो और किसी पराजित राजा को सोने की सांकल से, पर बंधन में दोनों हैं। सोने की सांकल में बंधे पुरुष को तुम मुक्त नहीं कह सकते। अशुभ से शुभ भला, शुभ से शुद्धत्व भला।
मनुष्य को हमेशा असत्य से सत्य, अंधेरे से प्रकाश और अशुभ से शुभ की यात्रा करनी चाहिये, परन्तु इससे आगे भी उसे दो कदम और बढ़ाने होंगे, जहाँ निर्वाण की पुण्य वेला घटित हो सके। हमें न केवल निर्विकार होना चाहिये, अपितु निर्विचार भी होना चाहिये।
हमारे यहाँ कहते हैं, 'अन्त मति सो गति' । मरते समय मनुष्य के मन में जैसे विचार होते हैं, उसको वैसा ही परभव उपलब्ध होता है। मनुष्य जिस भावना से देहत्याग करेगा, परलोक में वैसी ही भावना से उसका स्वागत होगा। समाधि उसी दशा का नाम है, जहाँ व्यक्ति न केवल अशुभ से शुभ की ओर यात्रा प्रारम्भ करता है, वरन् शुभ से भी दो कदम और आगे बढ़ाकर शुद्धत्व की ओर यात्रा प्रारम्भ हो जाती है।
अगर शुभ मति का परिणाम स्वर्ग है और अशुभ मति का परिणाम नरक, तो शुद्धत्व का परिणाम क्या होगा? विचार-मुक्ति का परिणाम? मेरे प्रभु! यही तो मोक्ष है, जहाँ व्यक्ति पाप-पुण्य, शुभ-अशुभ से उपरत होकर आत्मस्थ हो जाता है।
गलत भावनाओं का परिणाम नरक के रूप में मिलता है और अच्छी भावनाओं के फलस्वरूप स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त होता है। जहाँ व्यक्ति भावनाओं से, विचारों से शून्य हो जाता है, वहीं आपके जीवन के द्वार पर मोक्ष
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