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आपको १०० सौनये की भेंट दूंगी।
पंडितजी लोभ में आ गए। मन की वृत्ति बदली और उन्होंने भोजन कर लिया। धन आए मुट्ठी में, धर्म जाए भट्ठी में।' क्यों यह कहावत है ना! पंडितजी जब भोजन कर चुके तो वेश्या ने अपने मुँह में रखा पान बाहर निकाला और ५०१ सौनयों की थैली दिखाते हुए पंडित को नजर किया। पंडित ने झट से मुंह खोल दिया। उनका मुँह खोलना था कि वेश्या ने एक जोरदार चांटा उनके गाल पर मारा। और साथ ही उनसे कहा, 'अब पता लगा कि पाप का बाप कौन है?' पंडित कछ बोल न पाया। वह वेश्या का चांटा खाकर हक्का-बक्का रह गया। उसका सिर नीचे झुक गया।
वास्तव में लोभ ही मनुष्य को पाप करने के लिए प्रेरित करता है। लोभ के चलते आदमी नैतिक-अनैतिक का भेद भूल जाता है। आदमी की लोभ-वृत्ति उससे पाप करवाती है। आदमी पाप के कीचड़ में और धंसता चला जाता है। मैंने ऐसे-ऐसे लोग देखे हैं, जिन्होंने जीवन के छ:-छ: दशक पूरे कर लिए, मगर दुकान के फेरे अब भी लग रहे हैं। आत्म-चिंतन करिये कि ये फेरे कहीं जन्म-जन्म के फेरे न हो जाएँ। आखिर हमें इस आवागमन के चक्र से मुक्त होना है।
जो व्यक्ति इच्छाओं और तृष्णाओं का गुलाम है, उसका वर्तमान भी विफल है और भविष्य भी। हर सफलता उसके जीवन में विफलता का ही प्रतिफल बन कर आती है। जो व्यक्ति लोभ की वृत्ति में जीता है, इच्छाओं का अनुसरण करता है, वह वर्तमान को खड्डे में डालकर भविष्य की सोच रहा है। भला जिसका वर्तमान ही विफल हो रहा है, उसका भविष्य कैसे सफल हो पायेगा? जो 'आज' को असफल कर रहा है उसका कल भी असफल होता है। कल की चिन्ता कल करना, आज तो तुम आज को सार्थक करो। कहीं कल के चक्कर में आज न खो जाये।
आपने देखा होगा, लोग कल की चिन्ता में आज को दुःखी बना बैठते हैं। कल घी की रोटी खाने के ख्वाब में आज की लूखी रोटी को नकार देते हैं । वे यह नहीं जानते कि आज तो मेरा जीवन है जो कल रहेगा या नहीं, निश्चित थोड़े ही है। आज जो अनुकूलता है कल वह प्रतिकूलता में बदल जाये, ऐसा भी सम्भव है। इसलिए उचित यह है कि कल की प्रतिकूलता को कल पर ही छोड़ा जाये और आज की निश्चितता का सदुपयोग कर लिया जाये। कल भी जरूरत पड़ेगी, जो यह सोचकर संग्रह कर रहा है, वह गलती में है। वह मात्र कल्पनाओं में जी रहा है। वह आने वाले कल को अभी तक देख नहीं पाया है, फिर भी उसकी व्यवस्थाओं के लिए चिंतित है। कल की प्रतिकूलता अगर अभी तक जन्मी नहीं है तो जन्म के पहले ही उसके लिए उधेड़बुन में क्यों लगे हो? आज जो अनुकूलताएँ मिली हैं, उनका आज सार्थक उपयोग करें। सम्भव है कल इससे भी ज्यादा अनुकूलताएं मिल जायें। मेरी नजर में जो कल की चिंता से मुक्त होकर 'आज' को उज्ज्वल बनाता है, उसका 'कल' भी उज्ज्वल होता है।
लोभ की प्रवृत्ति में जीते हुए, कोरे ख्वाब देखने से कुछ नहीं होगा। सपनों में तो बहुत जी चुके हैं अब अपने में जीने का प्रयास किया जाना चाहिये। सपने में पता नहीं, क्या-क्या होता है। कभी सुख मिलता है कभी
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