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________________ तृष्णा : कब मिलेगा किनारा? - कौशाम्बी का ब्राह्मण कपिल, शास्त्रों का अध्ययन करने अपने दिवंगत पिता के मित्र राजगुरु इन्द्रदत्त के पास श्रावस्ती पहुँचा। कपिल की विधवा माँ का आग्रह था कि कपिल राजगुरु इन्द्रदत्त के सान्निध्य में विद्याअध्ययन करे। इन्द्रदत्त ने कपिल के भोजन की व्यवस्था श्रेष्ठि शालिभद्र के यहाँ की। शालिभद्र ने अपनी एक दासी को इस काम के लिए नियुक्त कर दिया। दिन-माह और वर्ष बीते । कपिल को दासी से और दासी को कपिल से कब प्रेम हो गया, दोनों को पता ही न चला। कपिल शास्त्रों का अध्ययन करने श्रावस्ती आया था, मगर करने लगा प्रेम की पढ़ाई । एक दिन श्रावस्ती में नगर-महोत्सव का आयोजन होने वाला था। उस दासी ने कपिल से कहा कि 'हम दोनों कुछ ही दिनों में पति-पत्नी होने वाले हैं। कल नगर महोत्सव है । सभी महिलाएँ गहने पहनेंगी। तुम भी मुझे कुछ लाकर दो।' कपिल पशोपेश में पड़ गया। उसके पास तो फूटी कौड़ी तक न थी। वह इन्द्रदत्त के यहाँ पढ़ता था और शालिभद्र के यहाँ भोजन करता था। आय का तो कोई जरिया ही न था। उसने अपनी स्थिति स्पष्ट की तो दासी ने उसे रास्ता बताया कि 'यहाँ का नगर सेठ प्रतिदिन सुबह जिस ब्राह्मण की प्रथम सूरत देखता है, उसे दो माशा सोना देता है। तुम भी चले जाओ। सुबह सबसे पहले उसके द्वार पर पहुँच जाओ। वह सोना मेरे काम आ जाएगा।' असमंजस से भरा कपिल सोचने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि सुबह हो उससे पहले ही कोई और ब्राह्मण वहाँ पहुँच जाए। वह रात्रि में ही वहाँ जाने के लिए तैयार हो गया। मध्य रात्रि में ही जब वह नगर सेठ की हवेली 27 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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