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________________ उलझा रहा जड़-पुद्गल पदार्थों में । मैं आसक्ति में सोया रहा, खोया रहा। अन्तस्-चेतना को उपलब्ध न हो पाया। मूर्छा और सुषुप्ति ऐसी गहरी कि जन्मों-जन्मों से भी न खुली। ___ महावीर ने उपवास किये, हमने भी उपवास करने शुरू कर दिये। महावीर ने किसलिए उपवास किये थे और हम किसलिए कर रहे हैं ? दोनों के लक्ष्य में कितना फर्क है ! वे कषाय-मुक्ति के लिए उपवास कर रहे थे, हम उपवास करके कषाय को और बढ़ावा दे रहे हैं । इच्छाओं का परिशमन करने के लिए उपवास होना चाहिये। यहाँ तो इच्छाएँ और बढ़ रही हैं । तपस्याओं में भी वैभव का प्रदर्शन करवाया जा रहा है। सब कुछ ढर्रा-सा चल रहा है। महावीर धन को छोड़ते हैं और हम अनाप-सनाप धन इकट्ठा कर रहे हैं। महावीर अपरिग्रह के प्रतीक थे और हम परिग्रह के पर्याय बन बैठे हैं । वे सत्य के प्रतीक थे और हम असत्य को कंधे पर ढोये बैठे हैं। जीसस कहते हैं, 'शत्रु से भी प्रेम करो' और हम मित्र से भी ईमानदारी से प्रेम नहीं करते हैं। वे कहते हैं, 'जो एक चांटा मारे उसके सामने दूसरा गाल भी कर देना, वह कमीज मांगे, तुम कोट भी उतारकर दे देना, वह एक मील बोझा पहुँचाने की मदद चाहे, तुम दो मील पहुँचा देना', पर हम सिद्धान्तों की दुहाई भर दे देंगे। करेंगे उल्टा-सुल्टा। मात्र किसी महापुरुष के अनुयायी होने से या उनके नाम से शोभायात्राएँ निकालने से, उनकी जय-जयकार करने से उन्हें पाया नहीं जा सकता। हम महावीर के सिद्धान्तों के बिल्कुल विपरीत चलते हैं । मात्र उनके गुणगान करके हम अगर संतुष्ट हो रहे हैं कि हम तो जैन हो गये तो जैनत्व इतना सस्ता नहीं है। अब छोड़ो इस भ्रम को कि मैं तो जैनी हो गया। दुबारा शुरुआत करें। अब तक तो जो समझा, वह आरोपित था। धार्मिकता तिलक और मुँहपत्ति में मे ही ऊँधी न रहे। वह हमारे व्यावहारिक जीवन में भी चरितार्थ हो।अन्यथा भ्रम के मायाजाल में, अहं के मायाजाल में ही डूबे रह जाएँगे। मैं देखता हूँ कि लोग अहंकार में अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते। अहम् के चलते वे अपनी झूठी शान बघारते हैं, भले ही भीतर से वे खोखले हो रहे हों। यही होता रहा है। कई ऐसे राजा हुए जिन्होंने राजपाट चले जाने के बावजूद अपनी अकड़ को नहीं छोड़ा। वे अपनी अकड़ में ही रहे, तो इसका नतीजा भी उन्होंने भुगता। आदमी को यही ध्यान नहीं रहता कि सब दिन एक समान नहीं रहते। घड़ी में १२ अंक होते हैं। आपने कभी घड़ी की सुइयों को किसी एक अंक पर स्थिर देखा है क्या? वे स्थिर रह ही नहीं सकतीं, क्योंकि समय कभी रुकता नहीं है। वह सतत् प्रवाहमान रहता है। जब समय रुकता नहीं तो आप क्यों एक जगह रुके हुए हैं? आपने नहीं सुना 'बहता पानी निर्मला', जो पानी बहता है वही निर्मल कहलाता है। जहाँ पानी ठहर नाम पोखर हो गया और उसका पानी सड़ गया। एक व्यक्ति या परिवार में मूर्च्छित मत रहो, स्वयं को विराट करो, अपनी दृष्टि को क्षितिज के पार ले जाओ। अपने जीवन को रोको मत, प्रवाहमान रखो। अहम् को छोड़ो, अन्यथा एक दिन ऐसा आएगा कि आप अकेले रह जाएँगे और वह अकेलापन आपको कहीं का न रखेगा। एक किसान बहुत घमण्डी था। किसी के घर में मौत होती तो वह घोड़े पर चढ़कर उसके घर जाता। सभी 23 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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