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________________ गिरता नहीं है। कहते हैं कि अमरीका में अब्राहम लिंकन का शताब्दी वर्ष चल रहा था। लिंकन पर पूरे देश में एक विशेष नाटक खेला जाना था। काफी खोज-पड़ताल करनेपर आखिर लिंकन का हमशक्ल आदमी मिल गया। उस आदमी को नाटक में लिंकन का पार्ट दिया गया। पूरे अमरीका में यह नाटक-मंडली घूमी। पूरे एक साल तक गाँव-गाँव, नगर-नगर में नाटक किया गया और वह आदमी ह-ब-ह लिंकन का रोल अदा करने लगा। लिंकन बोलते समय थोड़े तुतलाते थे अतः वह आदमी भी तुतलाने लगा। लिंकन का जैसा बोलने का ढंग, चलने-बैठने का जैसा ढंग, सब वैसा का वैसा ही। जिन्होंने लिंकन को देखा था, उन्हें तो विश्वास भी न हो रहा था कि क्या लिंकन की मृत्यु हुई है? साल भर बाद नाटक-मंडली समाप्त हुई। वह व्यक्ति अपने घर गया। लिंकन के ही कपड़े पहने हुए, लिंकन की तरह ही लँगड़ाता हुआ वह अपने घर आकर पत्नी-बच्चों से तुतलाकर बोलने लगा। परिवार वालों ने समझा, मज़ाक कर रहा है । सब हँसने लगे, कहा अब छोड़ो, वह तो नाटक का रोल था, अब तो नाटक खत्म हो गया। मगर वह व्यक्ति तो अब भी वैसे ही रहने-बोलने लगा, जैसे नाटक में लिंकन का पार्ट करते समय बोलता था। वह कोई मज़ाक नहीं कर रहा था। उसे तो विश्वास हो गया कि मैं लिंकन ही हँ। चलना-उठना-बैठनाखाना-पीना सब कछ लिंकन की तरह वही लिंकन की तरह छडी पकडकर लँगडाते हए चलना। लोगों ने काफी समझाया, 'भैया, वह नाटक था और अब नाटक खत्म हो गया है।' बड़े-बड़े बुद्धिमान समझाकर थक गये, मगर वह व्यक्ति टस-से-मस तक न हुआ। वह तो दावे के साथ कहता था कि मैं लिंकन ही हँ। तम किस नाटक की बात कर रहे हो? । आखिर परिवार के लोग उसे किसी मनोचिकित्सक के पास लेकर गये। उसने भी कई उपाय किये, करंट के झटके भी दिये। मगर वह मानने को तैयार ही नहीं था कि मैं लिंकन नहीं हूँ। उसी समय अमरीका में एक नई मशीन का आविष्कार हुआ था। झूठ को पकड़ने की मशीन । जिससे सच और झूठ उगलाना होता है, उस व्यक्ति के नीचे मशीन छिपा कर रख दी जाती है। जैसे कोडियोग्राम ग्राफ बनाता है, वैसे ही यह मशीन भी हृदय की धड़कनों का ग्राफ बनाती है। अगर आपने अनुभव किया हो तो जब आदमी झूठ बोलता है, तो उसके हृदय में धक्का लगता है और वह झटका ग्राफ पर आ जाता है। इस मशीन का उपयोग ऐसे किया जाता है कि पहले-पहल तो ऐसे प्रश्न पछे जाते हैं. जिनमें आदमी झठ बोल ही नहीं पाता। फिर यकायक ऐसा प्रश्न पूछते हैं जिसका सही जवाब पता होता है। आजकल अदालतों में भी इन मशीनों का उपयोग होने लगा है। तो मनोचिकित्सक ने उस 'लिंकन' को उसी मशीन पर खड़ा किया और ऐसे प्रश्न पूछने शुरू किये, जिनमें वह झूठ बोल ही न सके। मनोचिकित्सक ने फिर पूछा, 'घड़ी में कितना बजा है ?' उसने कहा 'दस बज कर चालीस मिनट।' मनोचिकित्सक ने कहा, 'मेरे हाथ में क्या है ?' उसने कहा, 'बाइबिल की किताब।' मनोचिकित्सक ने पूछा, 'सामने की दीवार का कलर क्या है ?' उसने कहा, 13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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