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________________ क्या हुआ होगा! मगर आप तो जिंदा हैं ?' उस आदमी ने कहा, 'क्या ! उस भोजन में सांप था? क्या मैं सांप को खा गया था? उसके हाथ-पांव काँपे और वह वहीं गिर पड़ा। सराय के मालिक ने कहा, 'आप घबराइये नहीं।' पर तब तक तो वह पूरा ही घबरा चुका था और दस माह बाद भी वह मर गया। उसे भय ने मारा, साँप ने नहीं। साँप मारता तो उसी दिन मार देता। क्या आपको पता है कि इस दुनियाँ में सो की जितनी जातियां हैं उनमें पांच प्रतिशत सांप ही जहरीले होते हैं। शेष में जहर नाम की चीज नहीं होती है। आदमी जहर के प्रभाव से कम किंतु सांप के भय से ज्यादा मरता है। इसलिए मृत्यु उसके पास जल्दी आती है, जो उससे भयभीत रहता है। हमारी मृत्यु, मृत्यु के कारण कम होती है किंतु भय के कारण ज्यादा होती है। दुनिया में जितने भय तुम्हारे भीतर पल रहे हैं, उनका मूल मृत्यु का भय ही है। जो इससे अभय हो गया, उसके जीवन के दूसरे भय तो स्वत: छूट जायेंगे। मेरी नजर में मृत्यु व्यक्ति की तभी होती है जब वह भयभीत हो, अन्यथा मृत्यु उसके पास आकर भी उसकी हथेली में अमरत्व की मेहंदी ही मढ़ती है। भय हमेशा दुश्मन से होता है और निर्भयता हमेशा मित्र से होती है। हमने मृत्यु को अपना दुश्मन मान रखा है इसलिए भीतर में भय की संवेदना जगती है। यदि उसी दुश्मनी के काँटों में मैत्री के फूल खिला दिये जाएँ, तो मृत्यु हमारे जीवन में महामित्र बनकर आ सकती है। __ मृत्यु पर विजय पाने की बेकार में कोशिश क्यों कर रहे हो? कौन पा सका आज तक उस पर विजय? और विजय पाने की जरूरत ही क्या है ? यह तो जीवन का एक विश्राम है। इस दौड़ती-भागती जिन्दगी में क्या कभी विश्राम नहीं करना है ? मृत्यु जर्जर काया को छोड़कर अभिनव काया को उपलब्ध कराती है, इसलिए मृत्यु जीवन का महा-अवसर है, महोत्सव है। स्वागत करो उसका, द्वार आये हुए अतिथि की तरह! ___ मैं एक परम सत्य और बता देना चाहता हूँ। संभव है, इस सत्य को आपने अब तक कई दफा शास्त्रों में पढ़ा होगा, प्रज्ञा पुरुषों से सुना भी होगा, पर आप सत्य को सत्य रूप में स्वीकार नहीं कर पाये। वह सत्य यह है कि मृत्यु जीवन का समापन नहीं है। मृत्यु के द्वार से गुजरकर जीवन नूतन होता है। जीवन को नित्य नया करने की यह अत्यंत सुव्यवस्थित व्यवस्था है, इसलिए यह कभी मत सोचना कि मृत्यु पर विजय पा लूँगा या मृत्यु से बच जाऊँगा। अगर किसी देव ने मृत्यु से बचने का वरदान भी दे दिया तो तुम्हारा जीवन इतना दुःखी हो जायेगा, इतना अशांत-पीड़ित हो जायेगा कि तुम जीवन से ही घबरा जाओगे। सिकंदर के बारे में कहते है कि जब वह भारत की यात्रा पर था तो किसी एक बुजुर्ग ने उसे बताया, 'सिकंदर! इस भारत देश में मरुस्थलों के बीच एक ऐसा अद्भुत झरना झरता है, जहाँ का पानी अगर पी लिया जाए तो आदमी अमर हो जाता है।' सिकंदर ने अपने सिपाहियों को आदेश दे रखा था कि जहाँ से गजरो, यह पता लगाते रहो कि वह झरना कहाँ है ? आखिर एक दिन उस झरने का पता लग गया। सिकंदर प्रसन्नता के मारे फूला न समाया। उसने सोचा कि मैं अमर हो जाऊँगा और दुनिया को तो क्या, मौत को भी हरा दूंगा। उसने उस झरने के चारों ओर पहरा लगवा दिया और अकेला उस झरने के पास गया। छोटी-सी खोह थी वहाँ। सिकंदर ने 105 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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