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________________ कुछ भी न मिला। मैंने कहा, 'जिंदगी जी ली, जी भी क्या ली, बस पूरी हो गयी, जैसे-तैसे, सोये-सोये।' और परिणाम यह हुआ कि हमारी जिंदगी जो हमें जीवन की परम ऊँचाइयों को स्पर्श करा सकती थी, वह बीच में ही धंसी रह गयी। अमृतधर्मा जीवन विषाक्त बन गया। जहाँ फूल खिल सकते थे वहाँ केवल काँटे ही खिले। हम सुगन्ध-सुवास न बिखेर पाये। हाँ, हमने दुर्गन्ध अवश्य बिखेर दी है। हम जीवन पर मनन करें, चिंतन करें। आखिर जीवन में हमारी उपलब्धियाँ क्या रही हैं ? धन-दौलत, परिवार क्या यही सब जीवन की उपलब्धियाँ हैं ? क्या उनका जीवन के मूल अस्तित्व से कोई सम्बन्ध है ? क्या इन सबके होते हुए भी तुम अन्त में निपट अकेले नहीं पड़ जाओगे ! जिन्हें जीवन की उपलब्धि मान रहे हो, ये कहाँ तक साथ निभा पाएँगे। क्या उस समय ये संगी-साथी कोई तुम्हारे सहायक हो पायेंगे जब पिंजरे खाली हो जायेंगे? ये सब पिंजरे के सम्बन्ध हैं, उसी के मोह-सूत्र हैं। जिनके लिए तुमने अपनी जिंदगी झोंक दी, पापपुण्य की भी परवाह नहीं की, क्या वे अब तुम्हें बचा पाएंगे? अगर भगवान स्वयं भी तुम्हारे सामने आकर खड़े हो जायें तो तुम्हें बचा नहीं पायेंगे और खास बात, तुम्हारा अपना खून जिसे तुमने अपने वे भी खून से सिंचित किया, वही तुम्हें आग में झोंकेगा। होगा मसीहा सामने तेरे, फिर भी न तू बच पायेगा। तेरा अपना खून ही आखिर, तुझको आग लगाएगा। आसमान पर उड़ने वाले, मिट्टी में मिल जाएगा। हम समझें अपने जीवन की मूल्यवत्ता को। प्रकृति की इस सौगात को यों ही न खो दें। कहीं यह वैभव मिट्टी के मौल न बिक जाये। सृष्टि की सबसे अनमोल कृति मनुष्य है और मनुष्य का सबसे बड़ा सृजन स्वयं का निर्माण है। बाहर के भवन खड़े करने से क्या लाभ, अगर भीतर का भवन खण्डहर हो रहा है। बाहर का वैभव तुम्हारे किस काम का अगर अन्तर में गरीबी बढ़ती जा रही है, गंदगी फैलती जा रही है। यह त्रैकालिक सत्य है कि इस सृष्टि में आत्मा को छोड़कर कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर तुम शाश्वतता की मोहर लगा सको। आप कुछ भी निर्मित करें, सब नष्ट होने वाला है। निर्माण करो अपने अन्तरलोक का जिससे कहीं खण्डहर ही साथ लिये तुम्हें विदा न होना पड़े। जीवन महज कोई लकड़ी का टुकड़ा नहीं है कि नदी में बहता रहे। वह पेड़ का पत्ता भी नहीं है जो हवा में उड़ता रहे । जीवन में सचेतन लक्ष्य होना चाहिये ताकि जीवन को हम जीवन कह सकें। ____ जीवन में घटने वाली घटनाओं, न केवल जीवन में अपितु सृष्टि में घटने वाली घटनाओं से जीवन में चिंतन पैदा होना चाहिये। हम दूसरे पर घटित हुए सत्य को, स्वयं पर घटित हुआ देखें । ये घटनाएँ ही तो हमारे जीवन में रूपांतरण का संदेश देगी। क्या तुम्हें पता है कि भगवान बुद्ध को वैराग्य कैसे पैदा हुआ? सत्य की खोज के लिए उन्होंने कदम कैसे बढ़ाये? बुद्ध के बारे में कहते हैं कि बुद्ध के जन्म के पश्चात् ज्योतिषियों ने कहा था कि बुद्ध घर में नहीं रहेंगे, वे संत बनेंगे। पिता ने बुद्ध के बड़े होने पर अनुचरों को आदेश दे रखा था कि बुद्ध को राजमहल की परिधि के बाहर न ले जायें ताकि कोई घटना उन्हें प्रभावित कर सके । यहाँ तक कि जिस बाग में 101 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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