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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
गु० ॥ २ ॥ निंद शयन जागर दिशा ॥ सु० ॥ ते सवि डूरे होय ॥ ० ॥ देखे उजागर दिशा ॥ सु० ॥ उज्ज्वल पाया दोय ॥ गु० ॥ ३ ॥ लही गुणठाएं तेरमुं ॥ सु० ॥ धुरसमये साकार || गु० ॥ जावजिनेश्वर वंदीए ॥ सु० ॥ नाठा दोष अढार ॥ गु० ॥ बती पर्याये ज्ञानी ॥ सु० ॥ जाणे ज्ञेय अनंत ॥ गु० ॥ श्रीशुन. वीरनी सेवना ॥ सु०॥ आपे पद अरिहंत ॥ गु० ॥ ५ ॥
॥ काव्यं ॥ डुतविलंबितवृत्तद्वयम् ॥
॥ क्षितितले कृतशर्म निदानकं, गणिवरस्य पुरोऽक्षतमंगलं ॥ क्षतविनिर्मितदेह निवारणं, जवपयोधि - समुद्धरणोद्यतं ॥ १ ॥ सहजजावसु निर्मलतां डुलै, - र्विपुल दोष विशोधक मंगलैः ॥ अनुपरोधसुबोध विधानकं, सहज सिद्धमहं परिपूजये ॥ २ ॥
॥ अथ मंत्रः ॥
॥ ॐ श्री परम० ॥ केवलज्ञानावरण निवारणाय श्रतं य० ॥ स्वा० ॥ इति केवलज्ञानावरणनिवारणार्थं षष्ठातपूजा समाप्ता ॥ ६ ॥
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